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Ncert Class 10 History Ch-5 Question Answer in Hindi | कक्षा 10वीं अध्याय 5 औद्योगीकरण का युग प्रश्न उत्तर
कक्षा | Class | 10th |
अध्याय | Chapter | 05 |
अध्याय का नाम | Chapter Name | औद्योगीकरण का युग |
बोर्ड | Board | सभी हिंदी बोर्ड |
किताब | Book | एनसीईआरटी | NCERT |
विषय | Subject | इतिहास | History |
मध्यम | Medium | हिंदी | HINDI |
अध्ययन सामग्री | Study Materials | प्रश्न उत्तर | Question answer |
महत्वपूर्ण खोजशब्द | Important keywords
प्राच्य : भूमध्य सागर के पूर्व में स्थित देश। आमतौर पर यह शब्द एशिया के लिए प्रयोग किया जाता है। पश्चिमी नजरिये से प्राच्य इलाके पूर्व आधुनिक, पारंपरिक और रहस्यमय थे
आदि : किसी चीज की प्रारंभिक या पहली अवस्था का संकेत । स्टेप्लर : ऐसा व्यक्ति जो रेशों के हिसाब से ऊन को ‘स्टेपल’ करता है या छाँटता है। फुलर : ऐसा व्यक्ति जो ‘फुल’ करता है यानि चुन्नटों के सहारे कपड़े को समेटता है। कार्डिंग : वह प्रक्रिया जिसमें ऊन या कपास आदि रेशों को कताई के लिए तैयार किया जाता है।
स्पिनिंग जेनी : जेम्स हरग्रीव्ज द्वारा 1764 में बनाई गई इस मशीन ने कताई की प्रक्रिया तेज कर दी तथा मजदूरों की माँग घटा दी। एक ही पहिया घुमाने वाला एक मजदूर बहुत सारी तकलियों को घुमा सकता था और एक साथ कई धागे बनने लगते थे।
फ्लाई शटल : यह पुल्लियों और रस्सियों के जरिए चलने वाला एक यांत्रिक औजार है जिसका बुनाई के लिए उपयोग किया जाता है। यह क्षैतिज धागे (ताना – the weft) को लम्बवत धागे (बाना – the wrap) में पिरो देता है। फ्लाई शटल के आविष्कार से बुनकरों को बड़े करघे चलाना और चौड़े अरज का कपड़ा बनाने में काफी सहायता प्राप्त हुई।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न | Very short answer type question
1 स्पिनिंग जेनी क्या है ?
उत्तर- जेम्स हरपीज द्वारा 1764 में बनाई गई इस मशीन ने कताई की प्रक्रिया तेज कर दी और मजदूरों की माँग घटा दी। एक ही पहिया घुमाने वाला एक मजदूर बहुत सारी तकलियों को घुमा देता था और एक साथ कई धागे बनने लगते थे।
2 फ्लाई शटल क्या है ?
उत्तर- यह रस्सियों और पुलियों के जरिए चलने वाला एक यांत्रिक औजार है जिसका बुनाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह क्षैतिज धागे (ताना – the weft) को लम्बवत् धागे (बाना – the warp) में पिरो देती है। फ्लाई शटल के आविष्कार से बुनकरों को बड़े करघे चलाना और चौड़े अरज का कपड़ा बनाने में काफी मदद मिली।
3.औद्योगीकरण (पूर्व औद्योगीकरण) से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – यूरोप में बड़े-बड़े कारखानों की स्थापना के पूर्व भी अंतर्राष्ट्रीय बाजारों के लिए बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन होने लगा था। यह उत्पादन कारखानों में न होकर, गाँवों में ग्रामीण कारीगरों द्वारा होता था। इन पर सौदागरों का नियंत्रण होता था। इसे ही पूर्व औद्योगीकरण या आदि औद्योगीकरण के नाम से जाना जाता है।
4 कब, कहाँ तथा किस के द्वारा पहली सूती कपड़ा मिल भारत में स्थापित की गई ?
उत्तर-1853 में भारत में पहली सूती कपड़ा मिल कवासजी नाना द्वारा मुंबई में स्थापित की गई थी।
class 10th Notes | MCQ |
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History | Political Science |
English | Hindi |
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5 ब्रिटिश काल में भारत में कितनी जूट एवं सूती मिलें थीं ?
उत्तर-ब्रिटिश काल में 1901 में 40 जूट मिल तथा 1905 में 206 सूती कपड़ा मिल भारत में थीं।
6 यूरोपीय मैनेजिंग एजेन्सियाँ किस प्रकार के उद्योगों में रुचि रखती थी ?
उत्तर- चाय और कॉफी के बागान में।
7 भारतीय कर्मकारों, कलाकारों, किसानों और मजदूरों की दशा क्यों खराब थी ?
उत्तर- अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी अपनी साख तथा एकाधिकार बनाए रखने के लिए रिश्वत खोरी का सहारा ले रही थी।
8 मशीन युग से पहले कौन-कौन भारतीय उद्योग एवं दस्तकारियों का विश्व बाजार में बोलबाला था ?
उत्तर- मशीन युग से पहले भारत के सूती और रेशमी कपड़े का विश्व-बाजार में बोलबाला था।
9 जमशेदजी जीजीभोये कौन थे ?
उत्तर- जमशेदजी जीजीभोये एक पारसी बुनकर के बेटे थे। अपने समय के बहुत सारे लोगों की तरह उन्होंने भी चीन के साथ व्यापार और जहाजरानी का काम किया था। उनके पास जहाजों का एक विशाल बेड़ा था। अंग्रेज और अमेरिकी जहाज कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा के कारण 1850 के दशक तक उन्हें सारे जहाज बेचने पड़े।
10 भारत की कौन-सी दो बंदरगाहों का दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के साथ संबंध था ?
उत्तर- कोरोमण्डल तट पर स्थित मस्लीपटम और बंगाल में हुगली का ।
लघु उत्तरीय प्रश्न | Short answer type question
1.ब्रिटेन की महिला कामगारों ने स्पिनिंग जेनी मशीनों पर हमले किए। व्याख्या करें ।
अथवा, बहुत सारे मजदूर स्पिनिंग जेनी के इस्तेमाल का विरोध क्यों कर रहे थे ? अथवा, स्पिनिंग जेनी क्या था ? इसका आविष्कार किसने किया था ?
उत्तर- (क) स्पिनिंग जेनी का आविष्कार जेम्स हस्ग्रीब्ज ने 1764 ई० में किया। इस मशीन ने कताई की प्रक्रिया तेज कर दी जिसके कारण अब मजदूरों की मांग घट गई।
(ख) एक ही पहिए को घुमाकर एक मजदूर सारी स्पिडल्स को घुमा देता था और एक साथ कई धागे बनने लगते थे।
(ग) बेरोजगारी के डर से महिला-कारीगर, जो हाथ से धागा कातकर गुजारा करती थीं, घबरा गई।
(घ) इसलिए उन्होंने इन नई मशीनों को लगाने का विरोध किया और जहाँ-जहाँ ये मशीनें लगाई गई उन्होंने उनपर आक्रमण करके उनको तोड़-फोड दिया। महिलाओं का विरोध तोड़-फोड़ काफी समय तक चलती रही।
2.सत्रहवीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर गाँवों में किसानों और कारीगरों से काम करवाने लगे। व्याख्या करें।
उत्तर- सत्रहवीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर गाँवों में किसानों और कारीगरों से काम करवाने लगे। उन्होंने ऐसा निम्नांकित कारणों से किया-
(क) उस समय विश्व व्यापार के विस्तार और उपनिवेशों की स्थापना के कारण चीजों की माँग बढ़ने लगी थी, इसलिए उद्योगपति और व्यापारी अपना उत्पादन बढ़ाना चाहते थे परन्तु शहरों में रहकर ऐसा नहीं कर सकते थे क्योंकि वहाँ मजदूर संघों और व्यापारिक गिल्ड्स काफी शक्तिशाली थे जो उनके लिए अनेक समस्याएँ पैदा कर सकते थे।
(ख) गाँवों में गरीब काश्तकार और दस्तकार सौदागरों के लिए काम करने लगे। इस समय काम चलाने के लिए छोटे किसान और गरीब किसान आमदनी के लिए नए स्रोत ढूँढ़ रहे थे। गाँवों में बहुत से किसानों के पास छोटे-मोटे खेत थे। लेकिन उनसे परिवार के सभी लोगों का भरण-पोषण नहीं हो सकता था।
(ग) शहरों के यूरोपीय सौदागर जब गाँवों में आए और उन्होंने माल पैदा करने के लिए पेशगी रकम दी तो किसान और कारीगर काम करने के लिए फौरन तैयार हो गए। ये लोग गाँव में रहकर अपने खेतों को सँभालते हुए, सौदागरों का काम भी कर लेते थे।
(घ) इस व्यवस्था से शहरों और गाँवों के बीच एक घनिष्ठ संबंध विकसित हुआ। सौदागर शहरों में रहते थे लेकिन उनके लिए काम ज्यादातर देहात में चलता था। चीजों का उत्पादन कारखानों के बजाय घरों में होता था और उस पर सौदागरों का पूर्ण नियंत्रण होता था।
3.सूरत बंदरगाह अठारहवीं सदी के अंत तक हाशिए पर पहुँच गया था। व्याख्या करें।
उत्तर-
(क) औपनिवेशिक काल में सूरत एक महत्वपूर्ण बंदरगाह था। जहाँ से पश्चिमी एशिया के साथ होने वाला व्यापार काफी समृद्ध था। तेजी से बदलती परिस्थितियों में कलकत्ता और बंबई नए औद्योगिक केन्द्र के रूप में उभरे जबकि सूरत जैसा विकसित केन्द्र हाशिए पर पहुँच गया।
(ख) इससे सूरत व हुगली, दोनों पुराने बंदरगाह कमजोर पड़ गए। यहाँ से होने वाले निर्यात में नाटकीय कमी आई। नए बंदरगाहों के जरिए होने वाला व्यापार यूरोपीय कंपनियों के नियंत्रण में था ।
(ग) अठारहवीं सदी के अंत तक यूरोपीय कंपनियों की ताकत बढ़ती जा रही थी। पहले उन्होंने स्थानीय दरबारों से कई तरह की रियायतें हासिल कीं और उसके बाद उन्होंने व्यापार पर इजारेदारी अधिकार प्राप्त कर लिए ।
(घ) बहुत सारे पुराने बंदरगाहों की जगह नए बंदरगाहों (बंबई व कलकत्ता) का बढ़ता महत्व औपनिवेशिक सत्ता की बढ़ती ताकत का संकेत था ।
4.ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में बुनकरों पर निगरानी रखने के लिए गुमाशों को नियुक्त किया था। व्याख्या करें।
उत्तर-ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय व्यापारियों और दलालों की भूमिका समाप्त करने तथा बुनकरों पर अधिक नियंत्रण स्थापित करने के विचार से वेतनभोगी कर्मचारी तैनात कर दिए जिन्हें गुमाशता कहा जाता था। इन गुमाशतों को अनेक प्रकार के काम सौपे गए।
(क) वे बुनकरों को कर्ज देते थे ताकि वे किसी और व्यापारी को अपना माल तैयार करके न दे सके।
(ख) वे ही बुनकरों से तैयार किए हुए माल को इकट्ठा करते थे।
(ग) वे बने हुए सामान विशेषकर बने हुए कपड़ों की गुणवत्ता की जाँच करते थे।
5.पूर्व औद्योगीकरण का मतलब बताएँ।
उत्तर-पूर्व औद्योगीकरण से हमारा अभिप्राय उन उद्योगों से है जो फैक्ट्रियाँ लगाने से पहले पनप रहे थे। अभी जब इंग्लैंड और यूरोप में फैक्ट्रियाँ शुरू नहीं हुई थीं तब भी वहाँ अंतर्राष्ट्रीय माँग को पूरा करने के लिए बहुत-सा माल बनता था। यह उत्पादन फैक्ट्रियों में नहीं होता था परन्तु घर-घर में हाथों से माल तैयार होता था और वह भी काफी मात्रा में ।
बहुत से इतिहासकार फैक्ट्रियों की स्थापना से पहले की औद्योगिक गतिविधियों को पूर्व औद्योगीकरण के नाम से पुकारते हैं। शहरों में अनेक व्यापारिक गिल्ड्स थीं जो विभिन्न प्रकार की चीजों का, फैक्ट्रियों की स्थापना से पहले, उत्पादन करती थीं। ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत से सौदागर यही काम किसानों और मजदूरों से हाथ द्वारा करवाते थे। यह पूर्व-औद्योगीकरण की व्यवस्था इंग्लैंड और यूरोप में फैक्ट्रियाँ लगने से पहले के काल में व्यापारिक गतिविधियों का एक महत्त्वपूर्ण अंग बनी हुई थी।
6.ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय बुनकरों से सूती और रेशमी कपड़े की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए क्या किया ?
उत्तर-ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय बुनकरों से सूती और रेशमी की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कई महत्त्वपूर्ण कार्य किए –
(क) निर्यात व्यापार में बहुत सारे भारतीय व्यापारी और बैंकर की भूमिक सराहनीय थी।
(ख) कंपनी ने बुनकरों से माल तैयार करवाने, बुनकरों को माल उपलब्ध कराने और कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने के लिए वेतनभोगी कर्मचारी नियुक्त कि जिन्हें गुमाश्ता कहा जाता था ।
(ग) कंपनी बुनकरों को कच्चा माल खरीदने के लिए कर्ज उपलब्ध कराने लगी।
(घ) कंपनी को माल बेचने वाले बुनकरों को अन्य खरीदारों के साथ कारोबार करने पर पाबंदी लगा दी। इसके लिए उन्हें पेशगी की रकम दी जाती थी।
(ङ) महीन कपड़े की माँग बढ़ने के साथ बुनकरों को अधिक कर्ज दिया जाने लगा ज्यादा कमाई की आस में बुनकर पेशगी स्वीकार कर लेते थे।
(च) यूरोप में भारतीय कपड़ों की भारी माँग को देखते हुए बुनकर और आपूर्ति की सौदागरों पर नियंत्रण करना आवश्यक समझा। कंपनी ने प्रतिस्पर्धा समाप्त करने, लागतों पर अंकुश रखने और कपास एवं रेशम से बनी चीजों की नियमित आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए प्रबंधन और नियंत्रण की एक नई व्यवस्था लागू कर दी।
7.1840 के दशक के बाद किन कारणों से रोजगार के साधन बढ़े ?
उत्तर- (क) सड़कों को चौड़ा करने में ।
(ख) नए रेलवे स्टेशनों के निर्माण में ।
(ग) रेलवे लाइनों के विकास में ।
(घ) गुफाओं की खुदाई में
8.मैनचेस्टर में बने कपड़े के आयात से भारत पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर- (क) इस आयात से भारतीय कपड़ा उद्योग को बड़ी हानि हुई क्योंकि अब भारतीय कपड़े के उपभोक्ता बहुत कम रह गए क्योंकि मैनचेस्टर का कपड़ा सस्ता और चमकदार था ।
(ख) इससे बहुत से बुनकर बेकार हो गए जिन्हें आस-पास के नगरों में जाकर मजदूरों का सा काम करना पड़ा।
9.औद्योगिक क्रांति का अर्थ समझाएँ।
उत्तर- औद्योगिक क्रांति हम उस क्रांति को कहते हैं जिसने अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में उत्पादन की तकनीक और संगठन में अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिए ये परिवर्तन इतनी तेज रफ्तार से आए और इतने प्रभावशाली सिद्ध हुए कि उन्हें ‘क्रांति’ का नाम दे दिया गया। इस क्रांति ने घरेलू उद्योग-धन्धों के स्थान पर फैक्ट्री सिस्टम को जन्म दिया, कार्य हाथों के स्थान पर मशीनों से होने लगा और छोटे कारीगरों का स्थान पूँजीपति श्रेणी ने ले लिया।
10.गाँव के बुनकरों और गुमाश्तों के बीच झगड़े क्यों हो रहे थे ?
उत्तर- जल्दी ही बहुत सारे बुनकर गाँवों में बुनकरों और गुमाश्तों के बीच टकराव की खबरें आने लगीं। इससे पहले आपूर्ति सौदागर अक्सर बुनकर गाँवों में ही रहते थे और बुनकरों से उनके नजदीकी तालुक्कात होते थे वे बुनकरों की जरूरतों का ख्याल रखते थे और संकट के समय उनकी मदद करते थे। नए गुमाश्ता बाहर के लोग थे। उनका गाँवों से पुराना सामाजिक सम्बन्ध नहीं था। ये दंभपूर्ण व्यवहार करते थे, सिपाहियों व चपरासियों को लेकर आते थे और माल समय पर तैयार न होने की स्थिति में बुनकरों को सजा देते थे। सजा के तौर पर बुनकरों को अक्सर पीटा जाता था और कोडे बरसाए जाते थे अब बुनकर न |
तो दाम पर मोलभाव कर सकते थे और न ही किसी और को माल बेच सकते थे उन्हें कंपनी से जो कीमत मिलती थी वह बहुत कम थी पर वे कजों की वजह से कंपनी से बंधे हुए थे।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न | Long answer type question
1.नए उपभोक्ता पैदा करने में विज्ञापन मदद करता है। कैसे ? कारण बताए।
उत्तर- नए उपभोक्ता पैदा करने का एक तरीका विज्ञापनों का है। जब नयी चीजें बनती हैं, तो लोगों को उन्हें खरीदने के लिए प्रेरित भी करना पड़ता है। लोगों को लगना चाहिए कि उन्हें उस उत्पाद की जरूरत है। जैसा कि हम जानते हैं, विज्ञापन विभिन्न उत्पादों को जरूरी और वांछनीय बना लेते हैं। वे लोगों की सोच बदल देते हैं और नयी जरूरतें पैदा कर देते हैं। आज हम एक ऐसी दुनिया में हैं जहाँ चारों तरफ विज्ञापन छाए हुए हैं।
अखबारों, पत्रिकाओं, होर्डिंग्स, दीवारों, टेलीविजन के परदे पर सब जगह विज्ञापन छाए हुए हैं। लेकिन अगर हम इतिहास में पीछे मुड़कर देखें तो पता चलता है कि औद्योगीकरण की शुरुआत से ही विज्ञापनों ने विभिन्न उत्पादों के बाजार को फैलाने में और एक नयी उपभोक्ता संस्कृति रचने में अपनी भूमिका निभाई है।
जब मेनचेस्टर के उद्योगपतियों ने भारत में कपड़ा बेचना शुरू किया तो वे कपड़े के बंडलों पर लेबल लगाते थे। लेबल का फायदा यह होता था कि खरीदारों को कंपनी का नाम व उत्पादन की जगह पता चल जाती थी।
लेबल ही चीजों की गुणवत्ता का प्रतीक भी था जब किसी लेबल पर मोटे अक्षरों में ‘मेड इन मेनचेस्टर’ लिखा दिखाई देता तो खरीदारों को कपड़ा खरीदने में किसी तरह का डर नहीं रहता था ।
इस प्रकार स्पष्ट है कि विज्ञापन नए उपभोक्ता पैदा करने में काफी मदद करता है।
2.उन्नीसवीं सदी के यूरोप में कुछ उद्योगपति मशीनों की बजाय हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता क्यों देते थे ?
उत्तर-19 वीं सदी के यूरोप में कुछ उद्योगपति मशीनों की बजाए हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता देते थे। उनके ऐसा करने के पीछे अनेक कारण उपस्थित किए जाते थे-
(क) विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में मानव श्रम की कोई कमी नहीं थी इसलिए कुछ उद्योगपति मशीनों की बजाय हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता देते थे।
(ख) कुछ उद्योगपति बड़ी मशीनों पर भारी खर्चा करने से हिचकिचाते थे क्योंकि मशीने लगाने में यह जरूरी नहीं था कि उनको ऐसा करने से लाभ रहेगा।
(ग) बहुत से ऐसे उद्योग है जहाँ श्रमिकों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है जैसे गैसधरों, शराबखानों, बंदरगाहों में जहाजों की मरम्मत और साफ-सफाई काम में मजदूरों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है। ऐसे उद्योगों में उद्योगप मशीनों की बजाय मजदूरों को ही काम पर रखना पसन्द करते थे।
(घ) यदि थोड़ी मात्रा में चीजें तैयार करनी होती थी तो भी मशीनों की बजा मजदूरों से काम करवाना बेहतर समझा जाता था ।
(ङ) कुछ वस्तुओं में लोग खास डिजाइनों की मांग करते थे जिन्हें मशीनों बनाना बहुत महंगा पड़ता था और कठिन भी होता था। इसलिए ऐसे कामों में भी मशीनों की अपेक्षा मजदूरों को अच्छा समझा जाता था वहाँ यांत्रिक प्रौद्योगिकी की नहीं वरन इंसानी निपुणता की आवश्यकता पड़ती थी।
(घ) विक्टोरिया काल के कुछ उच्च वर्ग के लोग जैसे- कुलीन और पूँजीपति वर्ग हाथों से बनी चीजों को अधिक पसंद करते थे। हाथ से बनी चीजों को सत्कार और उच्च समाज का प्रतीक माना जाता था। क्योंकि उनको एक-एक करके बनाया जाता था इसलिए हाथ से बने माल के डिजाइन उत्तम होते थे और उनकी फिनिशिंग अच्छी होती थी।
3.पहले विश्वयुद्ध के समय भारत का औद्योगिक उत्पादन क्यों बढ़ा ?
उत्तर-पहले विश्वयुद्ध के समय भारत का औद्योगिक उत्पादन क्यों बढ़ा इसके अनेक कारण दिए जाते हैं जिनमें से प्रमुख निम्नांकित हैं-
(क) प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटेन ऐसे उलझ गया कि उसका ध्यान अपने बच्चाज में लग गया। वह अब भारत में अपने माल का निर्यात न कर सका जिसके कारण भारत के उद्योगों को पनपने का सुअवसर प्राप्त हो गया।
(ख) इंग्लैंड के सब कारखाने निर्यात की विभिन्न चीजें बनाने की बजाय सैनिक सामग्री बनाने में लग गई इसलिए भारतीय उद्योगों को रातोरात एक विशाल देशी बाजार मिल गया।
(ग) एक विशाल देशी बाजार मिलने के अतिरिक्त भारतीय उद्योगों को जा सरकार द्वारा भी अनेक चीजें जैसे- फौज के लिए वर्दियों, बूट बनाने, टेंट आदि बनाने, घोड़ों के लिए अनेक प्रकार का सामान ब आदि के ऑर्डर मिल गए तो उनमें नई जान आ गई। जैसे-जैसे युद्ध बढ़ता गया भारतीय उद्योग भी प्रगति करते गया।
(घ) पुराने कारखानों के साथ-साथ बहुत सारे नए कारखाने खुल गए जिन उद्योगपतियों को ही नहीं, वरन् मजदूरों और कारीगरों की भी चाँदी है गई, उनके वेतन बढ़ गए जिससे उनकी काया पलट गई।
(ङ) प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सरकार को फंसा देखकर भारतीय नेताओं से स्वदेशी पर अधिक बल देना शुरू कर दिया तो भारतीय उद्योगों के लि सोने पर सुहागा वाली बात हो गई। इस प्रकार प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप में प्रथम विश्वयुद्ध भारतीय उद्योगों के एक लिए वरदान सिद्ध हुआ ।
कक्षा 10 इतिहास समाधान | class 10 history solution
FAQs
1 अंग्रेजी कंपनी द्वारा बुनकरों को ऋण देने की प्रथा को क्यों अपनाया गया ?
उत्तर- (क) बुनकरों को ऋण इसलिए दिए गए ताकि वे मंडी से रूई आसानी से खरीद सके ।
(ख) ऋण लेने वाले बुनकर किसी अन्य को अपना बना हुआ माल बेच नहीं सकते थे, यह अंग्रेजी कंपनी के लिए बड़ी अच्छी बात थी।
2.19 वीं सदी में एकाएक किस तरह से शहरी हस्त उद्योग बुरी तरह से समाप्त हो गए ?
उत्तर- अंग्रेज लोग बहुत-से मशीनों द्वारा निर्मित माल भारत लाए थे। ब्रिटिश माल गुणवत्ता में अच्छा था, साथ ही आकर्षक तथा सस्ता था। भारतीय हस्तकला उसके आगे नहीं ठहर सकती थी। इसी कारण से भारतीय हस्त उद्योग पतन के मार्ग पर चल पड़ा।
3.19 वीं शताब्दी के उन व्यवसायियों के नाम लिखें जिनका भारतीय उद्योग और व्यापार जगत में बोलबाला था ।
उत्तर-
(क) द्वारकानाथ,
(ख) डिनशॉ पेटिट और जमशेदजी नसरवानजी टाटा जैसे पारसी.
(ग) मारवाडी सेठ हुकुमचन्द,
(घ) जी० डी० बिरला के पिता तथा दादा आदि ।