NCERT Solutions Class 10 SST Economics Chapter 2 Notes In Hindi भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

क्या आप कक्षा 10वीं के विद्यार्थी हैं और आप NCERT Class 10 SST Economics Chapter 2 Notes In Hindi में महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर के तलाश में है ? क्योंकि यह अध्याय परीक्षा के लिए काफी महत्वपूर्ण है | इस अध्याय से काफी प्रश्न परीक्षा में आ चुके हैं | जिसके कारण इस अध्याय का प्रश्न उत्तर जानना काफी जरूरी है|

तो विद्यार्थी इस लेख को पढ़ने के बाद आप इस अध्याय से काफी अंक परीक्षा में प्राप्त कर लेंगे ,क्योंकि इसमें सारी परीक्षा से संबंधित प्रश्नों का विवरण किया गया है तो इसे पूरा अवश्य पढ़ें |

NCERT Solutions Class 10 SST Economics Chapter 2 Notes In Hindi भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

कक्षा | Class10th
अध्याय | Chapter02
अध्याय का नाम | Chapter Nameभारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक
बोर्ड | Boardसभी हिंदी बोर्ड
किताब | Book एनसीईआरटी | NCERT
विषय | Subjectअर्थशास्त्र | Economics
मध्यम | Medium हिंदी | HINDI
अध्ययन सामग्री | Study Materialsवस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर | MCQs



Very short answer type questions


1.प्राथमिक क्षेत्रक किसे कहते हैं ?

1 उत्तर-ऐसी गतिविधियों जहाँ प्रकृति द्वारा प्रदान की गई वस्तुओं को प्रयोग में लाया जाता है तो उन्हें हम प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियों कहते हैं। 

2.प्राथमिक क्षेत्रक से सम्बन्धित कुछ गतिविधियों के उदाहरण दें।

उत्तर- खनन, लकड़ी काटना या लम्बरिंग और मत्स्य ग्रहण आदि कुछ ऐसी प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ हैं

3 द्वितीय क्षेत्रक से क्या तात्पर्य है ? 

उत्तर-ऐसी गतिविधियाँ जो कच्चा माल अथवा प्राथमिक उत्पादों को उपयोगी वस्तुओं में बदल देती हैं उन्हें द्वितीयक क्षेत्रक की गतिविधियों कहा जाता है। 

4 द्वितीयक क्षेत्रक से सम्बन्धित कुछ गतिविधियों के उदाहरण दें। 

उत्तर- चीनी, कागज बनाना, कपड़ा तैयार करना आदि कुछ द्वितीयक क्षेत्रक के उदाहरण हैं।

5 तृतीयक क्षेत्रक किसे कहते हैं ? 

उत्तर- तृतीयक क्षेत्रक का सम्बन्ध वस्तुओं के उत्पादन से नहीं होता वरन् सेवाओं के निर्माण से होता है। 

6 तृतीयक क्षेत्रक के कुछ उदाहरण दें।

उत्तर- वकालत, डाक्टरी, बैंक, यातायात एवं संचार आदि कुछ तृतीयक क्षेत्रक गतिविधियों के उदाहरण हैं।

7 सकल घरेलू उत्पाद से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर- तीनों क्षेत्रकों (प्राथमिक, द्वितीय और तृतीयक) के उत्पादों के योगफल को देश का सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है। 

8 कृषि क्षेत्रक में अल्प-बेरोजगारी क्यों है ?

उत्तर- क्योंकि कृषि क्षेत्रक में अभी भी आवश्यकता से अधिक लोग लगे हुए हैं। इसलिए वहाँ श्रमिकों में अल्प-बेरोजगारी विद्यमान है।

9 प्रच्छन्न बेरोजगारी किसे कहते हैं ?

उत्तर- जब एक विशेष कार्य को करने के लिए आवश्यकता से अधिक लोग काम करते हैं तो उनकी पूरी रोटी नहीं चलती, ऐसे में वह जिस बेरोजगारी का शिकार होते हैं उसे अल्प-बेरोजगारी या प्रच्छन्न बेरोजगारी कहते हैं।

10 राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 (एन० आर० ई० जी० को काम का अधिकार क्यों कहा गया है ?

उत्तर- राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 को काम का अधिकार इसलिए कहा गया है क्योंकि, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 प्रतिवर्ष प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिनों का रोजगार सुनिश्चित करता है। यदि किसी आवेदक को 15 दिनों के भीतर रोजगार प्रदान नहीं किया जाता है। तो वह दैनिक रोजगार भत्ता का अधिकारी होगा। इस कानून के अन्तर्गत प्रस्तावित रोजगार का एक-तिहाई भाग महिलाओं के लिए आरक्षित होगा।” 

11 संगठित क्षेत्रक किसे कहते हैं ?

उत्तर-संगठित क्षेत्रक वह होता है जहाँ नौकरी की शर्तें निश्चित होती हैं, काम करने के घण्टे निश्चित होते हैं. भविष्य निधि और अन्य भत्ते भी मिलते हैं, और रविवार की छुट्टी भी रहती है।

12 असंगठित क्षेत्रक किसे कहते हैं ?

उत्तर-असंगठित क्षेत्रक वह होता है जहाँ नौकरी की शर्तें नियमित नहीं होती। भविष्य निधि तथा अन्य भत्ते नहीं मिलते और जहाँ पेंशन आदि की भी कोई व्यवस्था नहीं होती।

13 सार्वजनिक क्षेत्रक किसे कहते हैं ?

उत्तर- जिन क्षेत्रक की अधिकांश परिसम्पत्तियों पर सरकार का नियन्त्रण होता है उन्हें सार्वजनिक क्षेत्रक कहते हैं।

14 निजी क्षेत्रक किसे कहते हैं ?

उत्तर- जिन क्षेत्रकों की परिसम्पत्तियाँ एवं सेवाएँ किसी विशेष व्यक्ति या कम्पनी के हाथों में होती है, ऐसे क्षेत्रकों को निजी क्षेत्रक कहा जाता है।

15 निजी क्षेत्रक के उदाहरण दें।

उत्तर-टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी लिमिटेड एवं रिलायंस इण्डस्ट्रीज लिमिटेड आदि कुछ निजी क्षेत्रक के उदाहरण हैं।

16 बेरोजगारी क्या होती है ?

उत्तर- साधारण भाषा में ऐसे व्यक्ति जो किसी उत्पादक गतिविधि में नहीं लगे हैं। बेरोजगार कहलाते हैं। ऐसी स्थिति को बेरोजगारी कहते हैं। 

17 मौसमी बेरोजगारी से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर-किसान या व्यक्ति किसी एक निश्चित अवधि में काम करने के बाद बेरोजगार हो जाते हैं मौसमी बेरोजगारी कहलाती है। यह बेरोजगारी अधिकतर कृषि क्षेत्र में पाई जाती है। 

18 बेरोजगारी का सबसे व्यापक रूप कौन-सा है ?

उत्तर-बेरोजगारी का सबसे व्यापक रूप छिपी हुई बेरोजगारी है। क्योंकि व्यक्ति काम करता हुआ तो दिखाई देता है लेकिन वास्तविकता में वह बेरोजगार होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह की बेरोजगारी काफी अधिक देखने को मिलती है।

19 जनसंख्या वृद्धि किस प्रकार बेरोजगारी को जन्म देती है ?

उत्तर- रोजगार अवसरों की तुलना में जनसंख्या में अधिक दर से वृद्धि होती है। इस प्रकार जनसंख्या में अधिक दर से होने वाली वृद्धि, बेरोजगारी का कारण बनती है। इसलिए बेरोजगारी दूर करने के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण आवश्यक है।

20 स्थानीय बैंक कृषकों को कैसे सहायता कर सकते हैं ? 

उत्तर-

(क) वे उन्हें सस्ते दामों पर ऋण देकर उनकी सहायता कर सकते हैं। 

(ख) वे नौकरशाही के उलझनों से उन्हें बचा सकते हैं।

21 बेराजगारी को कम करने में पर्यटन से क्या सहायता मिल सकती है ? 

उत्तर- योजना आयोग के अध्ययन के अनुसार यदि पर्यटन क्षेत्रक में सुधार होता है तो कोई 35 लाख से अधिक लोगों को अतिरिक्त रोजगार प्राप्त हो सकता है।


Short answer type questions


1 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक क्या आप मानते हैं कि आर्थिक गतिविधियों का प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र में विभाजन की उपयोगिता है । व्याख्या करें कि कैसे ? 

उत्तर-आर्थिक गतिविधियों को प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रक में विभाजन की उपयोगिता निम्नांकित दो कारणों से है-

(क) रोजगार पद्धति का विश्लेषण- आर्थिक गतिविधियों के विभाजन के आधार पर यह विश्लेषण किया जा सकता है कि किस क्षेत्रक में अधिक लोग कार्य कर रहे हैं, किस क्षेत्र में बेरोजगारी अधिक है तथा अर्थव्यवस्था के किस क्षेत्र में अप्रत्यक्ष बेरोजगारी कितनी मात्रा में है। इस विश्लेषण के आधार पर सरकार रोजगार नीति का निर्धारण करती है। 

(ख) जी० डी० पी० की गणना- आर्थिक गतिविधियों के विभाजन के आधार पर जी० डी० पी० अर्थात् सकल घरेलू उत्पाद की गणना आसानी से की जा सकती है। इससे यह पता चलता है कि सकल घरेलू उत्पाद में किस क्षेत्र का योगदान कितना है ।

2 “भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक’ अध्याय में आए प्रत्येक क्षेत्रक को रोजगार और सकल घरेलू उत्पाद (जी० डी० पी०) पर ही क्यों केन्द्रित करना चाहिए ? चर्चा करें।

उत्तर- “भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक’ अध्याय में हमने इस बात की जानकारी प्राप्त की है कि मनुष्य की आर्थिक गतिविधियों को प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रक में विभाजित किया जाता है। प्राथमिक क्षेत्रक का सम्बन्ध उन गतिविधियों से होता है जो प्रकृति से प्राप्त वस्तुओं से सम्बन्धित होती है। जैसे- खेती करना, मछली पकड़ना, खान खोदना आदि। 

द्वितीयक क्षेत्रक का सम्बन्ध उन गतिविधियों से होता है जो प्राथमिक चीजों का प्रयोग करके उद्योगों द्वारा उन्हें उपयोगी चीज में बदलती है। जैसे- चीनी तैयार करना, कागज बनाना, कपड़ा तैयार करना आदि। तृतीयक क्षेत्रक का सम्बन्ध वस्तुओं के उत्पादन से नहीं होता वरन् सेवाओं के निर्माण से होता है। जैसे- वकालत, डॉक्टरी, बैंक, स्कूलों में शिक्षा उपलब्ध कराना आदि ।

जब हमने विभिन्न क्षेत्रकों की परिभाषा जान ली तो उसका मूल्याकंन भी करना चाहिए कि उनका सकल घरेलू उत्पाद और रोजगार के क्षेत्र में क्या योगदान रहा है। समय के साथ तीनों क्षेत्रकों के योगदान में (1973 से 2003 तक) वृद्धि हुई। परन्तु सकल घरेलू उत्पाद में सबसे अधिक योगदान तृतीयक क्षेत्रक का रहा परन्तु रोजगार के क्षेत्रक में बढ़ा तो अवश्य परन्तु अब भी भारत की 60% जनसंख्या प्राथमिक क्षेत्रक में लगी हुई है।

3 तृतीयक क्षेत्रक अन्य क्षेत्रकों से भिन्न कैसे है ? सोदाहरण व्याख्या करें। 

उत्तर- तृतीयक क्षेत्र में जो क्रियाएँ होती हैं वे प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रों में सहायता करती हैं। ये क्रियाएँ अपने आप उत्पादक नहीं होता है। परन्तु उत्पादक क्रियाओं की सहायक हो सकती हैं। उदाहरण के लिए प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रों द्वारा किया जाने वाला उत्पादन ट्रकों या रेलों द्वारा अन्य स्थानों पर पहुँचाया जाता है। 

कभी-कभी माल को गोदामों में भी रखा जाता है। अन्य व्यापारियों से टेलीफोन, पत्रों द्वारा बात करके या बैंकों से रुपया उधार लेकर माल का भुगतान किया जाता है। ये सारे काम तृतीयक क्रियाओं के उदाहरण हैं। इसका अर्थ है कि तृतीयक क्षेत्र सेवाकार्य करता है न कि उत्पादन कार्य। इसीलिए इसे ‘सेवा क्षेत्र’ के नाम से भी जाना जाता है।

4.प्रच्छन्न बेरोजगारी से आप क्या समझते हैं ? शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की उदाहरण देकर व्याख्या करें। 

उत्तर- प्रच्छन्न बेरोजगारी या गुप्त बेरोजगारी- भारत में किसान उत्पादन के लिए पुराने ढंग ही प्रयोग करते हैं क्योंकि वे गरीब हैं वे भूमि के स्वामी भी नहीं हैं। अगर खेती के आधुनिक तरीकों को अपनाया जाए तो ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं हो सकती है जबकि भूमि के किसी टुकड़े पर परिवार के तीन सदस्यों के स्थान पर दो सदस्य ही काम चला सकते हैं, परन्तु इसके अभाव के कारण तीनों सदस्यों को उसी खेत पर काम करना पड़ता है। इस प्रकार उत्पन्न हुई बेरोजगारी को प्रच्छन्न या गुप्त बेरोजगारी कहा जाता है।

प्रच्छन्न बेरोजगारी आमतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में पाई जाती है क्योंकि वहाँ से परिवारों के पास छोटे खेत होते हैं परन्तु उन पर परिवार के सारे सदस्य काम करते हैं। जहाँ दो व्यक्ति खेती के काम को पूरा कर सकते हैं वहाँ पाँच सदस्य लगे हुए हैं परन्तु सबके लिए वहाँ पूरा काम नहीं हो तो ऐसे परिवार के दो या तीन सदस्य यदि कोई और काम कर लें, जैसे किसी कारखाने में काम कर लें तो खेती के कार्य को फर्क नहीं पड़ेगा। बहुत

इसी प्रकार शहरी क्षेत्रों में भी प्रच्छन्न बेरोजगारी पाई जाती है। वहाँ भी मजदूरों, पेंटरों, प्लम्बरों आदि रोजगारों को महीनें में केवल 10 से 15 दिन तक ही काम मिलता है, बाकी दिन वे बेकार रहते हैं। इस बेरोजगारी को भी हम प्रच्छन्न बेरोजगारी कहते हैं।

5.आर्थिक गतिविधियाँ रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर कैसे वर्गीकृत की जाती हैं ? 

उत्तर- रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर आर्थिक गतिविधियाँ दो भागों में वर्गीकृत की जाती हैं-

(क) संगठित क्षेत्रक- वैसे उद्यम अथवा कार्य स्थान जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है तथा लोगों के पास सुनिश्चित काम होता है, संगठित क्षेत्रक के अन्तर्गत आते हैं। संगठित क्षेत्रक के उद्यम सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं तथा उन्हें सरकारी नियमों एवं विनियमों का अनुपालन करना पड़ता है।

(ख) असंगठित क्षेत्रक- वैसे उद्यम अथवा कार्य स्थान जहाँ रोजगार की अवधि अनियमित होती है तथा लोगों के पास सुनिश्चित काम नहीं होता, असंगठित क्षेत्रक के अंतर्गत आते हैं। ऐसे उद्यमों का सरकार द्वारा पंजीकरण नहीं किया जाता है। इस क्षेत्रक के नियम और विनिमय तो होते हैं, परन्तु उनका अनुपालन नहीं किया जाता है।

6 “असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का शोषण किया जाता है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं ? अपने उत्तर के समर्थन में कारण दें। 

उत्तर- असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों का चाहे वे ग्रामीण क्षेत्रों के हों (जैसे- भूमिहीन कृषि श्रमिक, छोटे और सीमांत किसान, फसल कटाईदार, बुनकर, बढ़ई, लोहार

आदि) या फिर शहरी क्षेत्रों के हो (जैसे- लघु उद्योगों के श्रमिक, निर्माण, व्यापार और परिवहन में लगे आकस्मिक श्रमिक, सड़कों पर घूमने वाले फेरीदार, सिर पर बोझ उठाने वाले श्रमिक आदि) सबका आर्थिक और सामाजिक शोषण होता है।

विशेषकर जो श्रमिक अनुसूचित जन-जाति, अनुसूचित जाति, पिछड़े हुए वर्गों से सम्बन्ध रखते हैं उनमें से अधिकतर असंगठित क्षेत्रक से सम्बन्ध रखते हैं। उन्हें न केवल आर्थिक शोषण का शिकार बनना पड़ता है वरन् उन्हें सामाजिक अन्याय का भी सामना करना पड़ता है। 

कई बार उन्हें कुँओं से पानी भरने नहीं दिया जाता, कई बार उन्हें विशेष मन्दिरों में जाने नहीं दिया जाता। उनके पूर्ण व्यक्तित्व के विकास के लिए हमें हर प्रकार के आर्थिक और सामाजिक शोषण से उन्हें बचाना होगा। तभी वे राष्ट्र के सच्चे नागरिक बनकर देश की सेवा कर सकेंगे। 

class 10th NotesMCQ
HistoryPolitical Science
EnglishHindi
HOMECLASS 10

7 संगठित और असंगठित क्षेत्रकों की रोजगार परिस्थितियों की तुलना करें।

उत्तर- संगठित और असंगठित क्षेत्रकों की रोजगार परिस्थितियों की तुलना-

(क) संगठित क्षेत्रक में जबकि विशेष नियमों का पालन होता है जिसके कारण श्रमिकों के हितों की रक्षा हो जाती है परन्तु असंगठित क्षेत्रक में ऐसे किन्हीं विशेष कानूनों का पालन नहीं होता। 

(ख) संगठित क्षेत्रक में श्रमिकों को उचित वेतन और वह भी ठीक समय पर मिल जाता है परन्तु असंगठित क्षेत्रक में ऐसा कम ही होता है।

(ग) संगठित क्षेत्रक में श्रमिकों की नौकरी प्रायः पक्की होती है और असंगठित क्षेत्रक में नहीं ।

(घ) संगठित क्षेत्रक में श्रमिकों को सरकारी नियमों के अन्तर्गत वेतन के अतिरिक्त भविष्य निधि, चिकित्सीय और अन्य भत्ते तथा वेतन सहित छुट्टियाँ मिल जाती है वहीं प्रायः असंगठित क्षेत्रक में ऐसा कुछ नहीं होता । 

(ङ) संगठित क्षेत्रक में रिटायर होने के पश्चात् पेंशन आदि मिल जाती है वहीं असंगठित क्षेत्रक में ऐसा कुछ नहीं होता।

8 रा० ग्रा० रा० गा० अ० – 2005 (NREGA 2005) के उद्देश्यों की व्याख्या करें। 

उत्तर- रा० ग्रा० रो० गा० अ०- 2005 (नरेगा-2005) के प्रमुख उद्देश्य निम्नांकित हैं-

(क) इस अधिनियम के अंतर्गत उन सभी लोगों, जो काम करने में सक्षम हैं और जिन्हें काम की जरूरत है, को सरकार द्वारा वर्ष में 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी गई है।

(ख) प्रस्तावित रोजगारों का एक-तिहाई भाग महिलाओं के लिए आरक्षित होगा। 

(ग) यदि सरकार किसी प्रार्थी को 15 दिनों के भीतर रोजगार उपलब्ध नहीं करा पाती है तो वह व्यक्ति दैनिक रोजगार भत्ता का अधिकारी होगा। 

(घ) इस अधिनियम के अंतर्गत उस तरह के कामों को वरीयता दी जाएगी, जिनसे भविष्य में भूमि से उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी।

9 अपने क्षेत्र से उदाहरण देकर सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक की गतिविधियों एवं कार्यों की तुलना करें। 

उत्तर- उद्योगों को स्वामित्व के आधार पर निम्नांकित वर्गों में भली प्रकार विभाजित किया जा सकता है-

(क) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग- वे उद्योग, जिनका स्वामित्व राज्य सरकार या केन्द्रीय सरकार के किसी संगठन के पास होता है, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग कहलाते हैं। ऐसे उद्योगों के उदाहरण हैं- भारतीय रेल, भिलाई, दुर्गापुर आदि में लोहे और इस्पात के उद्योग, जहाज निर्माण का उद्योग आदि। ऐसे उद्योग राज्य द्वारा अपने नियन्त्रण में चलाए जाते हैं और यहाँ सरकारी कानून लागू होते हैं।

(ख) निजी क्षेत्र के उद्योग- वे उद्योग जिनका स्वामित्व कुछ व्यक्तियों अथवा फर्मों या कम्पनियों के पास होता है उन्हें निजी क्षेत्र के उद्योग कहते हैं। निजी क्षेत्र के उद्योगों के उदाहरण हैं- जमशेदपुर में स्थित लोहा व इस्पात उद्योग। दिल्ली में ऐसे उद्योग हैं प्योर ड्रिंक्स, जो कैम्पा कोला आदि बनाते हैं और ब्रिटानिया उद्योग, जो डबल रोटी और बिस्कुट इत्यादि बनाते हैं।

10 सार्वजनिक क्षेत्रक की गतिविधियों के कुछ उदाहरण दें और व्याख्या करें कि सरकार द्वारा इन गतिविधियों का कार्यान्वयन क्यों किया जाता है ? अथवा, व्याख्या करें कि किसी देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक कैसे योगदान करता है ?

उत्तर- सार्वजनिक क्षेत्रक का होना अनिवार्य है, इसके मुख्य कारण निम्नांकित हैं-

(क) सार्वजनिक क्षेत्रक बहुत सी आवश्यक वस्तुओं को उचित दामों में उपलब्ध करवाता है जो कि निजी क्षेत्र कभी भी नहीं कर सकता। 

(ख) सार्वजनिक क्षेत्रक भारी उद्योगों का निर्माण कर सकता है क्योंकि इनमें बहुत से धन की आवश्यकता होती है। निजी क्षेत्रक में ऐसा करना प्रायः असम्भव सा होता है।

(ग) सार्वजनिक क्षेत्रक का मुख्य उद्देश्य लोगों की सेवा करना होता है क्योंकि लाभ कमाना उसका ध्येय नहीं होता, जबकि निजी क्षेत्र का मुख्य उद्देश्य अपने लाभ के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता।

(घ) सार्वजनिक क्षेत्रक पर अधिकतर सरकार का नियन्त्रण होता है इसलिए जन साधारण के कल्याण हेतु वह कई बार अपने पास से भी व्यय करके लोगों के भले के लिए अनेक वस्तुओं का उत्पादन कर देती है लोगों को कई बार गेहूँ, चावल आदि वस्तुओं को सार्वजनिक क्षेत्रक द्वारा सस्ते दामों पर भी उपलब्ध करा देती है। रेलवे, डाकघर, बड़े-बड़े अस्पताल, कारखाने आदि सरकार द्वारा की जाने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ मुख्य सार्वजनिक गतिविधियाँ हैं जिससे जनसाधारण को बहुत सा लाभ रहता है। लगभग सभी सार्वजनिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ देश के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है इसलिए उनका होना अनिवार्य है।

11 असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों को निम्नांकित मुद्दों पर संरक्षण की आवश्यकता है- मजदूरी, सुरक्षा और स्वास्थ्य उदाहरण सहित व्याख्या करें। 

उत्तर- असंगठित क्षेत्रक में काम करने वाले श्रमिकों को संरक्षण देने के निम्नांकित कारण हैं-

(क) असंगठित क्षेत्रक में काम करने वाले श्रमिकों को कोई निश्चित काम नहीं मिलता और कई दिन तक उन्हें बेकार रहना पड़ता है। इसलिए उन्हें संरक्षण की आवश्यकता है।

(ख) असंगठित क्षेत्रक में काम करने वालों का वेतन प्रायः कम होता है और वह भी निश्चित नहीं होता इसलिए उन्हें संरक्षण दिया जाना चाहिए।

(ग) असंगठित क्षेत्रक में काम करने वाले श्रमिकों को कोई निश्चित छुट्टियाँ भी नहीं मिलती, इसलिए वे काम के नीचे पिस कर रह जाते हैं। (घ) उन्हें रिटायर होने के पश्चात् कोई पेंशन आदि भी नहीं मिलती, इसलिए उन्हें संरक्षण की आवश्यकता होती है।

(ङ) असंगठित क्षेत्रक में काम करने वालों की नौकरी भी पक्की नहीं होती और जब चाहे उन्हें हटा दिया जाता है। इसलिए उनके लिए संरक्षण अति आवश्यक है।

(च) फर्मों और कारखानों के मालिक, विशेषकर असंगठित क्षेत्रक में बहुत से  सरकारी नियमों का पालन भी नहीं करते इसलिए उन्हें नियमों में बाँधने के लिए श्रमिकों को संरक्षण देना आवश्यक है।

12 भारत में तृतीयक क्षेत्रक इतना महत्त्वपूर्ण क्यों हो गया है ?

उत्तर-भारत में तृतीयक क्षेत्रक के महत्त्वपूर्ण होने के कारण-

(क) किसी भी देश में अनेक सेवाओं, जैसे- अस्पताल, शैक्षिक संस्थाएँ, डाक व तार सेवा, थाना, कचहरी, ग्रामीण प्रशासनिक कार्यालय, नगर निगम, रक्षा, परिवहन, बैंक, बीमा कंपनी इत्यादि की आवश्यकता होती है इन्हें बुनियादी सेवाएँ माना जाता है। किसी विकासशील देश में इन सेवाओं के प्रबंधन की जिम्मेदारी सरकार उठाती है।

(ख) द्वितीय, कृषि एवं उद्योग के विकास से परिवहन, व्यापार, भण्डारण जैसी सेवाओं का विकास होता है। प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक का विकास जितना अधिक होगा, ऐसी सेवाओं की माँग उतनी ही अधिक होगी।

(ग) तृतीय, जैसे-जैसे आय बढ़ती है, कुछ लोग अन्य कई सेवाओं जैसे- रेस्तरां, पर्यटन, शॉपिंग, निजी अस्पताल, निजी विद्यालय, व्यावसायिक प्रशिक्षण इत्यादि की माँग शुरू कर देते हैं। नगरों में, विशेषकर बड़े नगरों में इस द्रुत परिवर्तन को देख सकते हैं।

(घ) चतुर्थ, विगत दशकों में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी पर आधारित कुछ नवीन सेवाएँ महत्त्वपूर्ण एवं अपरिहार्य हो गई हैं। इन सेवाओं के उत्पादन में तीव्र वृद्धि हो रही है।

13 प्रच्छन्न बेरोजगारी’ और ‘मौसमी बेरोजगारी में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर- प्रच्छन्न बेरोजगारी और मौसमी बेरोजगारी में अंतर-

(a) प्रच्छन्न बेरोजगारी में व्यक्ति कार्य करता हुआ तो दिखाई देता है लेकिन वास्तव में वह बेरोजगार होता है।(a) मौसमी बेरोजगारी में किसान या व्यक्ति निश्चित अवधि में काम करने के बाद बेरोजगार हो जाता है ।
(b) ऐसी स्थिति जिसमें बेरोजगारी के आँकड़ों द्वारा दर्शाये गए लोगों से कहीं अधिक संख्या में लोग बेरोजगार हो ।(b) ऋतु परिवर्तन के हिसाब से बढ़ने वाली बेरोजगारी जो कि अधिकतर कृषि क्षेत्र में पाई जाती है।

14 खुली बेरोजगारी और प्रच्छन्न बेरोजगारी के बीच विभेद करें |

उत्तर- खुली बेरोजगारी और प्रच्छन्न बेरोजगारी के बीच विभेद निम्नांकित तथ्यों के आधार पर किया जा सकता है-

खुली बेरोजगारीप्रच्छन्न बेरोजगारी
(a) इस प्रकार की बेरोजगारी के अंतर्गत लोग पूर्णतः बेरोजगार होते हैं। (a) इसके अंतर्गत लोग नियोजित प्रतीत होते हैं लेकिन वास्तव में वे बेरोजगार होते हैं।
(b) इसके अंतर्गत एक भी व्यक्ति को काम उपलब्ध नहीं होता है।(b) इसके अंतर्गत किसी काम में लोग आवश्यकता से अधिक संख्या में लगे होते हैं।
(c) इस प्रकार की बेरोजगारी औद्योगिक क्षेत्रों में पाई जाती(c) प्रच्छन्न बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में पाई जाती है।
(d) इस प्रकार के बेरोजगार लोगों की गणना स्पष्ट रूप से की जा सकती है। (d) इस प्रकार के लोगों की गणना स्पष्ट रूप से नहीं की जा सकती।

15 प्राथमिक क्षेत्रक, द्वितीयक क्षेत्रक तथा तृतीयक क्षेत्रक की व्याख्या करें। 

(क) प्राथमिक क्षेत्रक प्रकृति द्वारा प्रदान की गई वस्तुओं को प्रयोग के लिए एकत्र करने से सम्बन्धित विभिन्न कार्यों को प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियों कहते हैं। खनन, लकड़ी काटना या लम्बरिंग और मत्स्य ग्रहण आदि ऐसी ही कुछ प्राथमिक गतिविधियाँ हैं।

(ख) द्वितीयक क्षेत्रक दे गतिविधियों जो कच्चे माल अथवा प्राथमिक उत्पादों को मानव के लिए उपयोगी वस्तुओं में बदलते हैं, द्वितीयक गतिविधियाँ कहलाती हैं। उदाहरण के लिए चीनी उद्योग, कागज उद्योग आदि प्राथमिक गतिविधियाँ पर निर्भर करते हैं।

(ग) तृतीयक क्षेत्रक- वे गतिविधियाँ जिनकी विविध क्रियाएँ आधुनिक उद्योगों (को सफलतापूर्वक चलाने के लिए अत्यन्त आवश्यक होती हैं, तृतीयक क्षेत्र की गतिविधियाँ कहलाती हैं। तृतीयक क्षेत्रक उद्योगों के उदाहरण हैं- यातायात, संचार, बैंक, शिक्षा आदि । तृतीयक क्षेत्रक में वस्तुओं का नहीं वरन् सेवाओं का निर्माण किया जाता

है। राष्ट्रीय आय का मुख्य आधार यह तृतीयक क्षेत्रक ही है चाहे रोजगार का मुख्य आधार अभी भी कृषि या प्राथमिक क्षेत्रक है। 

16 शहरी क्षेत्रों में रोजगार में वृद्धि कैसे की जा सकती है ?

उत्तर – शहरी क्षेत्रों में रोजगार में वृद्धि निम्न प्रकार से की जा सकती है-

(क) उत्पादन की श्रम-गहन तकनीकों को अपनाया जाना चाहिए। 

(ख) लघु एवं कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

(ग) विद्युत आपूर्ति, कच्चे माल और यातायात से संबंधित समस्याओं को दूर किया जाना चाहिए जिससे जो उद्योग क्षमता से कम उत्पादन कर रहे हैं, वे अपनी पूर्ण क्षमता का उपयोग कर सके।

(घ) हमारी शिक्षा प्रणाली को रोजगारोन्मुखी बनाया जाना चाहिए। व्यावसायिक शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

(ङ) सरकार को चाहिए कि वह ऋण, प्रशिक्षण, विपणन जैसी सुविधाएँ प्रदान कर स्व-रोजगार को प्रोत्साहित करे।

(च) विशेषकर पर्यटन, सूचना एवं प्रौद्योगिकी जैसे सेवा क्षेत्र में रोजगार की व्यापक संभावनाएँ हैं, इन क्षेत्रों में समुचित आयोजन और सरकारी सहायता की आवश्यकता है। 

(छ) लक्षित रोजगार सृजन कार्यक्रमों को पूर्ण लगन एवं ईमानदारी से लागू किया जाना चाहिए।


Long answer type questions


1 “भारत में सेवा क्षेत्रक में दो विभिन्न प्रकार के लोग नियोजित है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? ये विभिन्न प्रकार के लोग कौन हैं ? अथवा, पुष्टि करें। क्या सेवा क्षेत्रक वास्तव में संवृद्धि कर रहा है? अपने उत्तर की

उत्तर- सेवा क्षेत्रक में संवृद्धि- सभी देशों में आरम्भ में प्राथमिक क्षेत्रक ही सबस महत्त्वपूर्ण था। इसमें समाज के अधिकतर लोग कार्यरत थे, जैसे- किसान, पशु-पालन करने वाले, मछली पकड़ने वाले शहद इकट्ठा करने वाले, लकड़ी काटने वाले आदि। परन्तु समय के साथ लोगों ने छोटे-छोटे उद्योगों द्वारा विभिन्न योजनाओं का निर्माण करना शुरू कर दिया। इस प्रकार द्वितीयक क्षेत्र में उत्पादन होने लगा। तब अनेक वर्कशॉप और कारखाने स्थापित होने लगे।

रूई का प्रयोग करके मनुष्य ने कपड़ा बुनना शुरू कर दिया जिससे उसे पहले से कई गुणा आय होने लगी। प्राथमिक उत्पादनों से चाहे वह गेहूँ, चावल, गन्ना या फिर लकड़ी का टुकड़ा था विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का निर्माण होने लगा ।

तब धीरे-धीरे तृतीयक क्षेत्रक में वस्तुओं के स्थान पर अनेक सेवाओं जैसे- अध्यापन, परिवहन तथा संचार, बैंकिंग, चिकित्सा, वकालत आदि का निर्माण होने लगा। वर्तमान समय में सूचना प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित कुछ नवीन सेवाओं जैसे- इंटरनेट कैफे, ए० टी० एम० बूथ, कॉल सेंटर, सॉफ्टवेयर सेंटर का उत्थान हो चुका है। इन सेवाओं ने आय के क्षेत्र में पहले दो क्षेत्रकों- प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक को कहीं पीछे छोड़ दिया है।

सेवाओं में प्रायः दो प्रकार के व्यक्ति काम करने लगे हैं। एक प्रकार के वे लोग हैं जो प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रकों से सम्बन्धित सेवाओं में लगे हुए हैं जैसे- यातायात, संचार, व्यापार, बैंकिंग, स्टोरेज आदि गतिविधियों में सेवा क्षेत्रकों में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनका सम्बन्ध प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक की गतिविधियों से सीधे सम्बन्धित नहीं हैं। 

वे उत्पादन में कोई सहायता नहीं करते ऐसे लोगों में व्यक्तिगत सेवाएँ उपलब्ध कराने वाले लोग जैसे शिक्षक, डॉक्टर, धोबी, नाई, मोची एवं वकील आदि सम्मिलित है या फिर प्रशासनिक कार्यों में लगे हुए लोग होते हैं। 

2 भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में तृतीयक क्षेत्रक कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा रहा है।” क्या आप इससे सहमत हैं। अपने उत्तर के समर्थन में कारण दें।

उत्तर- नहीं, मैं इस कथन से सहमत नहीं हूँ कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में तृतीयक क्षेत्रक कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा रहा है। 

जी० डी० पी० की दृष्टि से वास्तव में, तृतीयक क्षेत्रक प्राथमिक क्षेत्रक के बदले भारत में सर्वाधिक उत्पादक क्षेत्रक बन गया है। 1973 में जी० डी० पी० में तृतीयक क्षेत्रक का हिस्सा लगभग 35% था जो 2003 में बढ़कर 50% से अधिक हो गया। 

यद्यपि 1973 से 2003 के बीच के 30 वर्षों में तीनों क्षेत्रकों के उत्पादन में वृद्धि हुई है. परन्तु तृतीयक क्षेत्रक में यह वृद्धि सर्वाधिक रही है। है. रोजगार की दृष्टि से इसी अवधि में तृतीयक क्षेत्रक के रोजगार में वृद्धि दर लगभग 300 प्रतिशत रही है जबकि द्वितीयक क्षेत्रक में यह वृद्धि दर 250% रही। प्राथमिक क्षेत्रक में तो यह वृद्धि बहुत ही कम थी। 

3.संगठित और असंगठित क्षेत्रक के बीच आप विभेद कैसे करेंगे ?

उत्तर- संगठित क्षेत्र-

(क) संगठित क्षेत्रक के अन्तर्गत वे उद्यम या व्यावसायिक इकाइयाँ आती हैं जो सरकार द्वारा पंजीकृत होती हैं, उन्हें कारखाना अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, पैच्युइटी भुगतान अधिनियम आदि के अन्तर्गत सरकारी नियमों एवं विनियमों का पालन करना पड़ता है।

(ख) इसके अन्तर्गत कुछ औपचारिक प्रक्रियाएँ होती हैं। (ग) रोजगार की शर्तें नियमित होती हैं। लोगों के काम सुनिश्चित होते हैं।

(घ) लोग निश्चित घंटे ही काम करते हैं। यदि वे अधिक घंटे काम करते हैं तो उन्हें इसके लिए नियोक्ता द्वारा अतिरिक्त भुगतान किया जाता है। 

(ङ) लोग नियमित रूप से मासिक वेतन प्राप्त करते हैं। 

(च) वेतन के अतिरिक्त लोग कई अन्य लाभ भी प्राप्त करते हैं जैसे- छुट्टी का भुगतान, प्रोविडेंट फंड, ग्रैच्युइटी, पेंशन आदि । 

असंगठित क्षेत्रक-

(क) इस क्षेत्रक के अन्तर्गत वे छोटे और छिटपुट इकाइयों आती हैं जो सामान्यतः सरकारी नियंत्रण के बाहर होती हैं। यद्यपि इनके लिए भी नियम और विनियम बने हैं। परन्तु इनका पालन नहीं होता है। (ख) यहाँ कोई औपचारिक प्रक्रिया नहीं होती है।

(ग) यहाँ रोजगार में मजदूरी कम और प्रायः अनियमित होती है। लोगों को अकारण किसी भी समय काम छोड़ने के लिए कहा जा सकता है। 

(घ) यहाँ काम के घंटे निश्चित नहीं होते हैं। साथ ही काम के अतिरिक्त घंटे के लिए भुगतान की कोई व्यवस्था नहीं है। 

(ङ) लोग दैनिक मजदूरी प्राप्त करते हैं। 

(घ) दैनिक मजदूरी के आलावा अन्य किसी लाभ का कोई प्रावधान नहीं है।

4.उन तरीकों की व्याख्या करें जिनके द्वारा भारत जैसे देश में अधिकाधिक रोजगार का सृजन किया जा सकता है। 

उत्तर- निम्न तरीकों से भारत में अधिकाधिक रोजगार का सृजन किया जा सकता है 

(क) सरकार या सरकारी बैंक सस्ते दामों पर छोटे किसानों को ऋण उपलब्ध करा सकते हैं। इस धन से वे अच्छे बीज, उत्तम औजार प्राप्त कर सकते हैं और कुँओं की व्यवस्था कर सकते हैं। कुँओं से निरन्तर मिलने वाले पानी से एक तो उन्हें वर्षा पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा और दूसरी जल-सिंचाई की अच्छी व्यवस्था हो जाने से वर्ष भर में एक की बजाय दो-तीन फसलें पैदा कर सकेंगे। 

(ख) अनेक नदी घाटी परियोजनाओं का निर्माण करना चाहिए तथा नहरों द्वारा पानी दूर-दराज के इलाकों में पहुँचाया जा सकता है और रोजगार की अधिक सुविधाएँ प्राप्त कराई जा सकती है।

(ग) परिवहन और स्टोरेज की बेहतर सुविधाएँ उपलब्ध कराने से किसानों को अपनी उपज के उचित दाम मिल सकेंगे और बेरोजगारी को कम करने में सहायता मिलेगी। 

(घ) ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक नए उद्योग खोलने से भी बेरोजगारी की समस्या को हल करने में काफी सहयोग मिलेगा।

(ड) ग्रामीण क्षेत्रों में शहद इकट्ठा करने, मछली पालन, दुग्ध उद्योग को बढ़ावा देने से भी बेरोजगारी की समस्या पर काबू पाया जा सकता है। भारत में विकास प्रक्रिया से जी० डी० पी० में तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है। 

5.क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? विस्तार से बताएँ ।

उत्तर – जी० डी० पी० से हमारा तात्पर्य तीनों क्षेत्रकों के उत्पादों के योगफल से है इसे सकल घरेलू उत्पाद भी कह दिया जाता है। इसी प्रकार वे गतिविधियाँ जिनके द्वारा चीजों के निर्माण की अपेक्षा सेवाओं का

निर्माण होता है, उसे तृतीयक क्षेत्रक कहा जाता है। इस बात में कोई संदेह नहीं कि भारत में विकास प्रक्रिया से जी० डी० पी० में तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है। 1973 से 2003 के तीस वर्षों में जी० डी० पी० की वृद्धि में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी 25% थी, इसी प्रकार इस काल में द्वितीय क्षेत्र की हिस्सेदारी भी लगभग 25% थी।  इस काल में तृतीयक क्षेत्र की हिस्सेदारी कोई 50% थी। परन्तु रोजगार के क्षेत्र में तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी कोई इतनी अधिक न

हो सकी। 2000 में रोजगार के क्षेत्रक में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी 60% थी, द्वितीयक क्षेत्रक की 18% और तृतीयक क्षेत्रक की 22% । इस प्रकार रोजगार के क्षेत्र में 2000 में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी सब से अधिक थी। यहाँ अभी भी कोई 66% के लगभग लोग कार्यरत थे। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि तृतीयक क्षेत्र की जी० डी० पी० में तो हिस्सेदारी बढ़ी है परन्तु रोजगार के क्षेत्र में अभी इतनी नहीं बढ़ी है, इस ओर भी प्रयत्न जारी है और भविष्य में रोजगार के क्षेत्र में भी तृतीयक क्षेत्रक की भागीदारी बढ़ने की सम्भावना है।


FAQs


Q. ग्रामीण क्षेत्रों में असंगठित क्षेत्रक में कौन-कौन से लोग मुख्य रूप से आते हैं ?

उत्तर- भूमिहीन कृषि श्रमिक, छोटे और सीमांत किसान, फसल कटाईदार, बुनकर, लोहार, बढ़ई आदि ।

Q. शहरी क्षेत्रों में असंगठित क्षेत्रक में कौन-से लाचार लोग शामिल हैं ? 

उत्तर – लघु उद्योगों के श्रमिक, निर्माण, व्यापार और परिवहन में लगे आकस्मिक श्रमिक, सड़क पर घूमने वाले फेरीवाले, सिर पर बोझ उठाने वाले श्रमिक आदि । 

Q. कृषि एवं सहायक क्षेत्रक किसे कहा जाता है ?

उत्तर- वह क्षेत्रक जिसमें प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग करके वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है, उसे कृषि एवं सहायक क्षेत्रक भी कहा जाता है।

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