Class 10 Civics Chapter 4 Notes In Hindi | लोकतांत्रिक राजनीति कक्षा 10 अध्याय 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले

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Class 10 Civics Chapter 4 Notes In Hindi | लोकतांत्रिक राजनीति कक्षा 10 अध्याय 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले

कक्षा | Class10th
अध्याय | Chapter04
अध्याय का नाम | Chapter Nameजाति, धर्म और लैंगिक मसले
बोर्ड | Boardसभी हिंदी बोर्ड
किताब | Book एनसीईआरटी | NCERT
विषय | Subjectलोकतांत्रिक राजनीति | Civics
मध्यम | Medium हिंदी | HINDI
अध्ययन सामग्री | Study Materialsप्रश्न उत्तर | Question answer

Class 10 Civics Chapter 3 Notes In Hindi | लोकतांत्रिक राजनीति कक्षा 10 अध्याय 3 लोकतंत्र और विविधता

Class 10 Civics Chapter 4 Notes In Hindi
Class 10 Civics Chapter 1 Notes In Hindi

अति लघु उत्तरीय प्रश्न | Very short answer type question

1.भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है ? 

उत्तर- भारत की विधायिकाओं (संसद एवं प्रांतीय विधानमण्डलों) में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात बहुत ही कम है। लोकसभा में महिला सांसदों की गिनती 10% से भी कम है।

2.भारत में महिलाओं की साक्षरता कितनी है और पुरुषों की कितनी ? 

उत्तर-भारत में महिलाओं की साक्षरता दर 54% है जबकि पुरुषों की 76% हैं। 

3 हमारा समाज पितृ प्रधान है या मातृ प्रधान ? 

उत्तर-पितृ प्रधान, क्योंकि इसमें अभी भी महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों का प्रभुत्व प्राप्त है ।

4 लैंगिक असमानता किसे कहते हैं ? 

उत्तर- जब पुरुषों एवं महिलाओं में किसी भी प्रकार का भेदभाव किया जाता है तो उसे लैंगिक असमानता कहते हैं।

5 तीन प्रकार की सामाजिक विषमताओं के नाम लिखें। 

उत्तर: सुन लिंग, धर्म और जाति पर आधारित सामाजिक विषमताएँ ।

6 पितृ प्रधान का शाब्दिक अर्थ क्या है ?

उत्तर- पितृ प्रधान- इसका शाब्दिक अर्थ तो पिता का शासन है पर इस पद का प्रयो महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा महत्व, ज्यादा शक्ति देने वाल व्यवस्था के लिए भी किया जाता है।

7 पारिवारिक कानून क्या है ? 

उत्तर- पारिवारिक कानून- विवाह, तलाक, गोद लेना और उत्तराधिकार जैसे परिव से जुड़े मसलों से सम्बन्धित कानून हमारे देश में सभी धर्मों के लि अलग-अलग पारिवारिक कानून है। 

8 वर्ण व्यवस्था क्या है ?

चता-वर्ण-व्यवस्था- जाति समूहों का पदानुक्रम जिसमें एक जाति के लोग हर में सामाजिक पायदान में सबसे ऊपर रहेंगे तो किसी अन्य जाति समूह के लो क्रमागत के रूप से उनके नीचे।

9 जाति प्रथा से आपका क्या तात्पर्य है ?

उत्तर-जाति प्रथा- शाम शास्त्री ने अपनी सुप्रसिद्ध पुस्तक ‘जाति की उत्पत्ति’ जाति प्रथा की परिभाषा इन शब्दों में दी है- “विवाह और भोजन जैसे कार्यों कुछ लोगों के आपस में संगठित हो जाने को जाति प्रथा कहते हैं।”

10 शहरीकरण किसे कहते हैं ?

उत्तर-ग्रामीण इलाकों से निकलकर लोगों का शहरों में बसना शहरीकरण कहलाता है। 

class 10th NotesMCQ
HistoryPolitical Science
EnglishHindi
HOMECLASS 10

लघु उत्तरीय प्रश्न | Short answer type questions

1.विभिन्न तरह की सांप्रदायिक राजनीति का ब्यौरा दें और सबके साथ एक-एक उदाहरण भी दें।

उत्तर- जब कुछ धर्मों के लोग अपने धर्म को दूसरों से श्रेष्ठ मानने लगते हैं तो इस भावना को सांप्रदायिकता कहा जाता है। प्रायः इस भावना के अन्तर्गत लोग धर्म को राजनीति से जोड़ने लगते हैं।

सांप्रदायिकता राजनीति में अनेक रूप धारण कर सकती है- 

(क) सांप्रदायिकता से प्रेरित व्यक्ति अपने धर्म को औरों के धर्म से श्रेष्ठ मानने लगता है। अनेक धर्म गुरुओं को अपने-अपने धर्मो का गुणगान करते हुए हमने अकसर देखा होगा। वे अपने धर्म के पक्ष में पुल बाँध देते हैं।

(ख) सांप्रदायिक विचारधारा सदा इस प्रयत्न में रहती है कि उनका अपना धर्म किसी न किसी ढंग से अपना प्रभुत्व स्थापित कर ले। जो लोग बहुसंख्यक होते हैं उनका प्रयत्न यही रहता है कि वे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर बहुसंख्यकवाद थोप दें जो संसदीय परम्पराओं के सदा विरुद्ध होता है। ऐसा श्रीलंका में हो रहा है।

(ग) चुनावी राजनीति में कई राजनेता विभिन्न धार्मिक समुदायों की धार्मिक भावनाओं से खेलते हुए उन्हें उल्लू बनाने का प्रयत्न करते हैं और सीधे-साधे लोग उनके बहकावे में आ जाते हैं।

(घ) कई बार सांप्रदायिक राजनीति सबसे गन्दा रूप ले लेती है, जब वह धर्म और संप्रदाय के आधार पर लोगों में आपसी दंगे तक करवा देती है। जिसमें हजारों निर्दोष लोग मारे जाते हैं। कुछ ऐसे ही 1947 ई० में देश के विभाजन के समय हुआ जब हजारों लोग घटिया सांप्रदायिक राजनीति का शिकार हुए।

2 दो कारण बताऐं कि क्यों सिर्फ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते।अथवा, जाति का राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है ? 

उत्तर-यह ठीक है कि राजनीति में या चुनावों में जातिगत भावनाओं का प्रभाव अवश्य पड़ता है परन्तु बहुत मामूली । जाति ही राजनीति या चुनावों का आधार है बात सच नहीं है। निम्नांकित विवरण से यह बात और भी स्पष्ट हो जाती है।

(क) किसी एक संसदीय चुनाव में किसी एक जाति के लोगों का बहुमत नहीं होता। इसलिए उम्मीदवार को एक जाति का नहीं वरन् सब जातियों के लोगों का भरोसा प्राप्त करना होता है। 

(ख) यदि किसी विशेष चुनाव क्षेत्र में एक जाति के लोगों का प्रभुत्व होता है तो विभिन्न राजनीतिक दल उसी जाति के उम्मीदवारों को खड़ा कर देते हैं ऐसे में उस जाति का प्रभाव जाता रहता है। 

(ग) कितनी बार ऐसा देखा गया है कि एक ही जाति के लोग एक बार जिस उम्मीदवार को सफल बना देते हैं अगली बार उसे हटा देते हैं। ऐसे में वह जातीय प्रभाव कहा गया। 

(घ) चुनावों में जाति की भूमिका ही महत्त्वपूर्ण नहीं होती वरन् अनेक अलग कारक भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राजनीतिक दलों से गहरा जुड़ाव सरकार द्वारा किया गया काम-काज और नेताओं की लोकप्रियता भी चुनावों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसलिए यह कहना कि राजनीति या चुनाव जातियों का खेल है सरासर गलत बात है।

3 बताएँ कि भारत में किस तरह अभी भी जातिगत असमानताएँ जारी हैं। 

उत्तर – जाति प्रथा भारतीय समाज का अभिन्न अंग है। समय-समय पर इसमें अनेक बदलाव आते गए और अनेक सुधारकों ने इसे सुधारने का प्रयत्न किया। संविधान ने भी किसी प्रकार के जातिगत भेदभाव को निषेध किया है और जाति व्यवस्था से पैदा होने वाले अन्याय को समाप्त करने पर जोर दिया है। परन्तु इतना सब कुछ होने पर भी समकालीन भारत से जाति प्रथा विदा नहीं हुई है। जाति व्यवस्था के कुछ पुराने पहलू अभी भी विद्यमान हैं।

अभी भी अधिकतर लोग अपनी जाति या कबीले में ही विवाह करते हैं। सदियों से जिन जातियों को पढ़ाई-लिखाई के क्षेत्रों में प्रभुत्व स्थापित था यह आज भी। है और आधुनिक शिक्षा में उन्हीं का बोलबाला है। जिन जातियों को पहले शिक्ष से वंचित रखा गया था उनके सदस्य अभी भी स्वाभाविक रूप से पिछड़े हुए हैं। जिन लोगों को आर्थिक क्षेत्र में प्रभुत्व स्थापित था, वह आज भी थोड़े-बहुत अन्तर के बाद मौजूद है। जाति और आर्थिक हैसियत से काफी निकट का सम्बन्ध माना जाता है। देश में संवैधानिक प्रावधान के बावजूद छुआछूत की प्रथा अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है।

4.भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है ? • अथवा भारत के विधानमण्डलों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कितने प्रतिशत है ? इसको सुधारने हेतु क्या किया जा रहा है ?

उत्तर- भारत की विधायिकाओं (संसद एवं प्रांतीय विधानमण्डलों) में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात बहुत ही कम है। लोकसभा में महिला सांसदों की गिनती 10% से भी कम है। प्रान्तीय विधानसभा में उनका प्रतिनिधित्व और भी कम है, जो 5% से कभी भी नहीं बढ़ा। इस मामले में भारत का नम्बर विश्व भर के बहुत से देशों से कम है। हमें यह जानकर हैरानी होती है कि महिला प्रतिनिधित्व के मामले में भारत बहुत से अफ्रीकी अमेरिकी देशों से बहुत पीछे है।

परन्तु अब मसले को सुधारने की ओर महिला संगठनों और सरकार द्वारा ध्यान दिया जा रहा है। कई नारीवादी आंदोलन और महिला संगठन इस निष्कर्ष तक पहुँचे हैं कि जब तक महिलाओं की सत्ता में भागीदारी उचित नहीं होती उनकी समस्याओं का निपटारा नहीं हो सकता। ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायती राज के अन्तर्गत और शहरों में नगरपालिकाओं में एक-तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिए गए हैं। अब महिला संगठनों और कार्यकर्ताओं द्वारा प्रयत्न जारी है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की भी एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर देनी चाहिए। संसद के सामने ऐसा एक बिल निर्णय के लिए पड़ा हुआ भी है।

5 किन्हीं दो संवैधानिक प्रावधानों का जिक्र करें जो भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाते हैं। 

उत्तर- (क) भारत का कोई राजकीय धर्म नहीं है। जैसा कि बौद्ध धर्म, श्रीलंका में है, इस्लाम, पाकिस्तान में है और अभी हाल तक हिंदू धर्म, नेपाल का राज धर्म था। हमारा संविधान किसी भी धर्म को कोई विशेष दर्जा नहीं देता है।

(ख) हमारा संविधान सभी व्यक्तियों और समुदायों को छूट देता है कि वे अपने धर्म का प्रचार-प्रसार या अभ्यास किसी तरह से भी करें या किसी भी धर्म को न माने । संविधान धर्म के नाम पर भेदभाव की आज्ञा नहीं देता है। 

6 सांप्रदायिकता से आपका क्या तात्पर्य है ? इसको दूर करने के किन्हीं दो उपायों को लिखें।

उत्तर- अपने धर्म को ऊँचा समझना तथा दूसरे धर्मों को नीचा समझने बल्कि अपने धर्म

को प्यार करने और दूसरे धर्मों से घृणा करने की प्रवृत्ति को सांप्रदायिकता कहा जाता है। ऐसी भावना आपसी झगड़ों का मुख्य कारण बन जाती है और इस प्रकार प्रजातंत्र के मार्ग में एक बड़ी बाधा उपस्थित करती है। देश का बँटवारा इसी भावना का परिणाम था। सांप्रदायिकता निम्नांकित उपायों से दूर की जा सकती है- 

(क) शिक्षा द्वारा- शिक्षा के पाठ्यक्रम में सभी धर्मों की अच्छाइयाँ बताई जाएँ और विद्यार्थियों को सहिष्णुता एवं सभी धर्मो के प्रति आदर भाव सिखाया जाए।

(ख) प्रचार द्वारा- समाचार-पत्र, रेडियो, टेलीविजन आदि से जनता को धार्मिक सहिष्णुता की शिक्षा दी जाए। 



7 सांप्रदायिकता क्या है ? भारत में सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाले कारकों का उल्लेख करें। 

उत्तर- सांप्रदायिकता का अर्थ है अपने संप्रदाय के प्रति स्नेह तथा अन्य संप्रदायों के प्रति घृणा उत्पन्न करना। दूसरे शब्दों में, अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ समझते हुए

दूसरे धर्मों के प्रति घृणा उत्पन्न करना । भारत में सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाले कारक-

(क) धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद उत्पन्न हो जाते हैं। इन विवादों को राजनीतिक दल और अधिक उभार देते हैं। वे वोटों के कारण विभिन संप्रदाय के पक्ष में बोलने लगते हैं जिसके कारण विभिन्न संप्रदाय के लोगों में सांप्रदायिक भावना भड़क उठती है। 

(ख) राजनीतिक दलों द्वारा संप्रदाय विशेष को ज्यादा महत्व देना और चुनादी में धर्म के आधार पर अभियान को प्रोत्साहन देना ।

(ग) सांप्रदायिकता के विकास में कट्टरपंथी महत्वपूर्ण भूमिका निवाते है। समाज में धार्मिक उन्माद फैलाते रहते हैं। 

8 जातिवाद क्या है ? जातिवाद की बुराइयाँ कैसे दूर कर सकते हैं?

उत्तर-जातिवाद एक ऐसा व्यवहार है, जिससे उत्तेजित होकर उच्च वर्ग के लोग निवर्ग से घृणा करने लगते हैं। जाति व्यवस्था का आधार जन्म है।

इसकी बुराइयों से निपटने के तरीके-

(क) जातिवाद के विरुद्ध जनमत तैयार करना चाहिए।

(ख) कानून द्वारा सरकार को चाहिए कि स्त्री-पुरुष के बीच समानता लाने का प्रयास करे।

9 जातिवाद के दुष्प्रभाव क्या हैं ?

उत्तर- निम्नांकित कारणों से सामाजिक असमानता या जातिवाद लोकतंत्र के मार्ग में

बाधक बन जाती है–

(क) सामाजिक असमानता या जातिवाद से ऊँच-नीच की भावना उत्पन्न होती है। एक जाति का दूसरी जाति के द्वारा उत्पीड़न व शोषण होता है। यह वातावरण लोकतन्त्र के लिए बड़ा बाधक है।

(ख) सामाजिक असमानता या जातिवाद के कारण जनता विभिन्न वर्गों में बँट जाती है, उनमें अनेक भेदभाव उत्पन्न हो जाते हैं और देश की एकता न हो जाती है।

(ग) सामाजिक असमानता या जातिवाद के कारण लोग वोट भी इसी आधार पर देने लगते हैं, जो कि लोकतन्त्र के लिए बड़ा हानिकारक है।

10.धर्मनिरपेक्ष राज्य से आप क्या समझते हैं ?

हर-धर्मनिरपेक्ष राज्य वह राज्य है जो सभी धर्मो को बराबर समझता है। भारत भी 10 धर्मनिरपेक्ष राज्य है। भारत में हर नागरिक को चाहे वह हिन्दू हो, मुसलमान हो, सिक्ख हो या इसई, अपने धर्म के पालन करने का अधिकार है। हमारा देश एक किसी धर्मविशेष का पक्ष नहीं लेता। न यह किसी धर्म के साथ भेदभाव ही करता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न | Long answer type questions

1.जीवन के उन विभिन्न पहलुओं का जिक्र करें जिनमें भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव होता है या वे कमजोर स्थिति में होती हैं। 

उत्तर- जीवन के विभिन्न पहलू जहाँ भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव किया जाता है 

(क) समाज में महिलाओं का निम्न स्थान- भारतीय समाज में महिला को म पुरुष के अधीन ही रखा गया है। उसे कभी भी स्वतंत्र रूप से रहने अवसर प्रदान नहीं किए गए। 

(ख) बालिकाओं के प्रति उपेक्षा- आज भी बालिकाओं की अनेक प्रकार अवहेलना की जाती है। लड़के के जन्म पर आज भी सभी बड़े खुश होते है • और अनेक जश्न मनाते हैं, परन्तु लड़की के जन्म पर परिवार में चुप-चुपता हो जाता है। दूसरे, लड़की का जन्म परिवार पर एक बोझ समझा जाता है क्योंकि उसे जन्म से लेकर मृत्यु तक परिवार को कुछ न कुछ देना ही पड़ता है। तीसरे, शिक्षा के क्षेत्र में भी लड़कियों से भेद-भाव किया जाता है। चौथे जबकि लड़कों का जीवन याचना के लिए कोई न कोई काम सिखाया जाता है, लड़कियों को रसोई तक सीमित रखा जाता है।

(ग) महिलाओं की शिक्षा की अवहेलना अभी भी बहुत से लोग ऐसे हैं ज लड़कियों की शिक्षा की ओर वह ध्यान नहीं देते। उनकी शिक्षा केवल कुछ धार्मिक ग्रन्थों तक ही सीमित रहती है। चाहे इस ओर कुछ प्रगति देख को मिली है और कुछ लड़कियों ऊँची शिक्षा भी प्राप्त करने लगी है परन्तु महिलाओं में साक्षरता की दर अब भी 54% है जबकि पुरुषों में 76%। इसी प्रकार अब भी स्कूल पास करने वाली लड़कियों की एक सीमित संख्या ही उच्च शिक्षा की ओर कदम बढ़ा पाई है क्योंकि माँ बाप लड़कियों की लड़कों की शिक्षा पर ज्यादा खर्च करना पसन्द करते हैं।

(घ) काम के एक जैसे अवसर न होना- काम करने के अवसर भी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के लिए कम हैं, और जब काम मिल भी जाता है तो उनके वेतन में बहुत अन्तर होता है एक महिला मजदूर को एक पुरुष अपेक्षा कम मजदूरी मिलती है जबकि दोनों एक-सा काम करते हैं। अब न ऊँची तनख्वाह पाने वाले और ऊँचे पदों पर पहुँचने वाली महिलाएँ बहुत ही कम होती हैं।

(ङ) विधानसभाओं में महिलाओं की संख्या कम होना- अब भी महिला सांसदों के लोकसभा में संख्या 100% तक नहीं पहुँची है और प्र विधानसभाओं में तो उनकी संख्या 50% से भी कम है।


FAQs

1 लैंगिक असमानता का आधार क्या है ?

उत्तर-लैंगिक असमानता का आधार स्त्री और पुरुष की जैविक बनावट नहीं बलि इन दोनों के बारे में प्रचलित धारणाएँ और सामाजिक भेदभाव हैं।

2 हमारी सामाजिक शांति तथा सौहार्द को कौन भंग करता है ?

उत्तर-जातिवाद झगड़े, सांप्रदायिक दंगे, क्षेत्रीय हिंसा एवं वंशानुगत शत्रुता आ हमारी सामाजिक शांति और सौहार्द को भंग करते हैं।

3 अल्पसंख्यक किसे कहते हैं ?

उत्तर- अल्पसंख्यक उन लोगों को कहते हैं जो धर्म अथवा भाषा के आधार पर किस विशेष प्रदेशों में बहुमत में नहीं होते।

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