Ncert Class 10 History Chapter 8 Question Answer in Hindi | कक्षा 10वीं अध्याय 8 उपन्यास, समाज और इतिहास प्रश्न उत्तर

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Ncert Class 10 History Ch-8 Question Answer in Hindi | कक्षा 10वीं अध्याय 8 उपन्यास, समाज और इतिहास प्रश्न उत्तर

कक्षा | Class10th
अध्याय | Chapter08
अध्याय का नाम | Chapter Nameउपन्यास, समाज और इतिहास
बोर्ड | Boardसभी हिंदी बोर्ड
किताब | Book एनसीईआरटी | NCERT
विषय | Subjectइतिहास | History
मध्यम | Medium हिंदी | HINDI
अध्ययन सामग्री | Study Materialsप्रश्न उत्तर | Question answer


महत्वपूर्ण खोजशब्द | Important keywords

भद्र समाज : जो लोग ऊँची सामाजिक हैसियत और ऊँचे खानदान में पैदाइश का दावा करते थे। उनका मानना था कि सही व्यवहार के मानक वही तय करते हैं।

पत्रात्मक उपन्यास : पत्रों की शृंखला के रूप में लिखा हुआ।

धारावाहिक: ऐसी पद्धति जिसमें कहानी को किस्तों में प्रकाशित किया जाता है। प्रत्येक किस्त अखबार या पत्रिका के अगले अंक में छपती है।

जनभाषा (वर्नाक्युलर) : औपचारिक, शास्त्रज्ञ शास्त्र के बजाय सामान्य बोलचाल की भाषा। व्याकरण: लेखन, रेखांकन, चित्रकारी आदि के माध्यम से निरूपण का एक ऐसा ढंग जिसमें हास्यपरक और चतुर ढंग से समाज की आलोचना की जाती है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न | Very short answer type question

Ncert Class 10 History Ch-8 Question Answer
Ncert Class 10 History Chapter 8 Question Answer

1.संक्षेप में लिखें- इनकी व्याख्या करें-

(क) ब्रिटेन में आए सामाजिक बदलावों से पाठिकाओं की संख्या में इजाफा हुआ।

उत्तर:(i) चूंकि साहित्यिक विद्या में महिलाएँ चरित्र के रूप में स्वयं जुड़ी हुई थी अतः उनकी रूचि साहित्य में होनी स्वाभाविक थी।

(ii) 18वीं सदी में औद्योगिक क्रांति के कारण मध्यम वर्ग में सम्पन्नता बढ़ी जिससे इस वर्ग में महिलाओं को पढ़ने के लिए अधिक समय मिलने लगा।

इस दौरान कुछ उपन्यासकारों ने अच्छे स्वभाव वाली महिलाओं को अपनी एकांत जिंदगी में खुशियाँ लाने के लिए विवाह के प्रस्ताव रखे। ऐसे उपन्यासों ने ब्रिटेन के ग्रामीण क्षेत्रों की कुलीन महिलाओं में उपन्यास पढ़ने की रूचि पैदा की। 

(iv) कालांतर में इन महिलाओं को विद्रोही महिलाओं के रूप इन उपन्यासों में चित्रित किया जाने लगा जिससे एक प्रगतिशील महिला वर्ग का उत्थान और प्रसार हुआ। फलस्वरूप महिलाएँ साहित्य में अभिरूचि लेने लगी।

(ख) रविन्सन क्रूसो के वे कौन-से कृत्य हैं, जिनके कारण वह हमें ठेठ उपनिवेशकार दिखाई देने लगता है?  हीन मानता है। एक देसी व्यक्ति को मुक्त कराकर वह उसे अपना गुलाम बना लेता है। वह उससे उसका नाम पूछना भी आवश्यक नहीं समझता अपितु उसे अपनी तरफ से ही फ्राइडे कहकर संबोधित करने लगता है।

उत्तरः यद्यपि उस समय के दौरान क्रूसो के व्यवहार को अमान्य नहीं समझा गया क्योंकि उस दौर में अधिकांश लेखक उपनिवेशवाद को एक सहज और प्राकृतिक परिघटना मानते थे। यहाँ भी क्रूसो एक साहसिक यात्री होने के साथ-साथ दास व्यापारी है जो उस दौरान गलत नहीं समझा जाता था।

(ग) 1740 के बाद गरीब लोग भी उपन्यास पढ़ने लगे। 

उत्तरः 1740 के उपरान्त गरीब लोग भी उपन्यास पढ़ने लगे जिसके निम्नलिखित कारण थे

(i) आरंभ में उपन्यास सस्ते नहीं थे परन्तु जैसे ही ये कम दामों में उपलब्ध होने लगे निर्धन व्यक्ति इनकी तरफ आकर्षित होने लगे।

(ii) 1740 में यूरोप में चलते-फिरते पुस्तकालयों के कारण गरीब व्यक्तियों को आसानी से पुस्तकें उपलब्ध होने लगी थी।

(iii) छपाई की नई तकनीकों के आविष्कार से पुस्तकों की गुणवता तथा कीमत में निरन्तर कमी आती गई इसके साथ ही निर्धन वर्ग में पुस्तकों के प्रति रूचि बढ़ती गई। 

(iv) औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप लोगों की आय में वृद्धि हुई। उन्हें कुछ समय आराम के लिए मिलने लगा। इस समय का प्रयोग निर्धन वर्ग पठन-पाठन में करने लगा।

(v) कुछ उपन्यासकारों ने निर्धन वर्ग से अपने उपन्यासो: पात्रों का चुनाव किया जिससे निर्धन वर्ग में इनकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ। 

(vi) निर्धन व्यक्तियों के पास बड़े-बड़े होटलों, रेस्टोरेंटी की दुकानों पर जाने के लिए पर्याप्त साधन नहीं थे जबकि उपन्यासों के माध्यम से वे एकांत में घंटों अपना मन बहला सकते थे। इस कारण सभी अनेक गरीब उपन्यास पढ़ने के लिए प्रेरित हुए।

(घ) औपनिवेशिक भारत के उपन्यासकार एक राजनैतिक उद्देश्य के लिए लिख रहे थे। 

उत्तरः 19वीं शताब्दी के अनेक उपन्यासकारों ने अपनी कल्पनाओं एक प्रमुख आधार भारतीय राजनीति को बनाया। उन्होंने अपने उपन्यासों का प्रयोग समाज में नजर आने वाली बुराइयों की आलोचना करने, उनका इलाज करने के लिए किया।

इसके अलावा अपने उपन्यासों के माध्यम से राष्ट्रीय भावना अन्तर्राष्ट्रीयवाद, पराधीनता की बुराइयाँ, राष्ट्र प्रेम तथा ब्रिटिश शासन के द्वारा किए जा रहे जुल्मों का चित्रण करने में किया। उन्होंने भारत को एक महान् धरती के रूप में चित्रित किया तथा इस प्रकार भारत के स्वतंत्रता संग्राम तथा राष्ट्रवादी आंदोलन को प्रोत्साहित किया। का

2. तकनीक और समाज में आए उन बदलावों के बारे में बतलाइए जिनके चलते अठारहवीं सदी के यूरोप में उपन्यास पढ़ने वालों की संख्या में वृद्धि हुई।

उत्तरः 18वीं सदी में यूरोपीय समाज में व्यापक बदलाव आया जिसके कारण उपन्यास के पाठकों में भारी वृद्धि हुई। इसके निम्नलिखित कारण ये – 

(i) उपन्यासों में रची गई दुनिया बड़ी विश्वसनीय तथा दिलचस्प थी। एक बार पढ़ना शुरू करते ही पाठक इस अजीब व आकर्षक दुनिया में उलझ कर रह जाता था ।। 

(ii) उपन्यासों को नितान्त अकेले या फिर दोस्तों-रिश्तेदारों के साथ मिलकर भी पढ़ा जा सकता था। चार्ल्स डिकेन्स के उपन्यास पिक्विक पेपर्स का 1896 में

(iii) छपना इस दौरान हुई एक महत्वपूर्ण घटना थी। सचित्र और सस्ती पत्रिकाओं का अपना एक अलग ही आकर्षण था जिनमें धारावाहिक मुद्रण ने पाठकों की रूचि को और बढ़ाया।

(iv) उपन्यास आम लोगों की जिंदगी के काफी करीब होते हैं यही कारण है कि जनसाधारण इनमें ज्यादा रुचि लेता है। 

(v) उपन्यास आम लोगों की जनसाधारण भाषा का प्रयोग करते हैं। लोगों की अलग-अलग भाषाओं से निकटता बनाकर उपन्यास एक राष्ट्र के विभिन्न समुदायों की साझा दुनिया का निर्माण करता है। फलस्वरूप ये आम लोगों में अधिक लोकप्रिय होते हैं।

3.निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें।

(क) उड़िया उपन्यास 

उत्तरः प्रथम उड़िया उपन्यास राम शंकर राय द्वारा रचित ‘सौदामिनी’ था परन्तु यह रचना अधूरी रह गई। इसके पश्चात् 1902 में छः माणो आठों गुठी नामक उपन्यास प्रकाशित हुआ जिसे फकीर मोहन सेनापति द्वारा लिखा गया था। इस उपन्यास को छः एकड़ और 92 डेसीमल भूमि पर अनुवादित किया गया। इसके माध्यम से लेखक ने भू-स्वामियों और भूमि की मल्कियत से जुड़ी समस्याएं उठाई थीं। उड़ीसा के इस महान उपन्यासकार ने बंगाल और भारत के अर्थ क्षेत्रों के लेखकों के लिए एक प्रेरणादायक लेखक का कार्य किया।

(ख) जेन ऑस्टिन द्वारा औरतों का चित्रण 

उत्तरः जेन ऑस्टिन के उपन्यासों में 19वीं सदी के ब्रिटेन के कुलीन ग्रामीण समाज का चित्रण किया गया है। जहाँ महिलाओं को धनी या जायदाद वाले बर खोजकर ‘अच्छी शादियों करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। उनके एक उपन्यास प्राइड ऐण्ड प्रेज्युडिस को एक पंक्ति हैं। “यह एक सर्वस्वीकृत सत्य है कि कोई अकेला आदमी अगर मालदार है तो उसे एक अदद बीबी की तलाश होगी”, ऑस्टिन की यह पंक्ति भौतिकवादी संस्कृति के प्रति झुकाव का प्रतीक है।

(ग) उपन्यास परीक्षा-गुरु में दर्शायी गई नए मध्यवर्ग की तसबीर 

उत्तरः 1882 में रचित परीक्षा गुरु को हिंदी भाषा का पहला उपन्यास होने का गौरव प्राप्त है। इसके लेखक श्री निवास दास थे। इसके माध्यम से उन्होंने निम्नलिखित सामाजिक पहलुओं को उजागर किया है-

(i) इस उपन्यास में खुशहाल और अमीर परिवारों के युवाओं को बुरी संगत के नैतिक खतरों के प्रति आगाह किया गया है। इस उपन्यास के माध्यम से ये बताया गया है कि लोगों को औपनिवेशिक शासन के साथ कदम मिलाने में किस प्रकार कठिनाई आती है। साथ ही वे अपनी सांस्कृतिक परम्पराओं और उनके होते हुए हनन के प्रति क्या नजरिया अपनाते हैं।

(iii) यह उपन्यास औपनिवेशिक भारत में आधुनिकता की दुनिया में मध्यम वर्ग एक साथ भयानक व आकर्षक महसूस होती है । 

(iv) ‘परीक्षा गुरु’ पाठक को जीने के सही तरीके बताता है। इसके साथ ही वह प्रत्येक मानव से यही आशा रखता है के वे समाज में चतुर और व्यवहारिक बने तथा अपने सामाजिक मूल्यों एवं परंपराओं की रक्षा करें। इस उपन्यास के माध्यम से समाज के युवाओं को समाचार पढ़ने की आदत डालने की अपील भी की जाती है। लेकिन पाठकों को लेखक यह संदेश भी देता है कि वे यह सब मध्यम वर्ग के निर्धारित सामाजिक मूल्यों के साथ समझौता किए बिना ही करें। उपरोक्त विशेषताओं के बावजूद भी यह उपन्यास अत्यधिक उद्देश्यात्मक शैली का होने के कारण पाठकों को आकर्षित नहीं 

4. उन्नीसवीं सदी के ब्रिटेन में आए ऐसे कुछ सामाजिक बदलावों की चर्चा करें जिनके बारे में टॉमस हार्डी और चार्ल्स डिकेन्स ने लिखा है। 

उत्तरः लेखक टॉमस हार्डी द्वारा 19वीं सदी में ब्रिटेन के सामाजिक परिवर्तनों का उल्लेख –

(i) उन्नीसवीं सदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार टॉमस हार्डी ने इंग्लैंड के तेजी से गायब होते जा रहे देहाती समुदाय के यारे में लिखा। यह वही समय था, जब बड़े किसानों ने अपनी जमीनों को बाड़ाबंद कर लिया था और मशीनों से उत्पादन करने लगे थे। हमें यह बदलाव हार्डी के 1886 में प्रकाशित उपन्यास ‘मेयर ऑफ कॅस्टरब्रिज’ में देखने को मिलता है। इस उपन्यास का पात्र कॅस्टरब्रिज नामक एक देहाती शहर का मेयर बनने में सफल होता है। वह स्वतंत्र विचारों का व्यक्ति है परन्तु अपने कर्मचारियों के साथ उसका रवैया अनिश्चित था जो कभी बेहद दयालु तो कभी क्रूरतम होता था।

इसके विपरीत उनके प्रतिद्वंद्वी डॉनल्ड फारफे की प्रबंधन तकनीक सक्षम थी जो सबके साथ एक समान व्यवहार करता था और अंततः वह मेयर अपने प्रतिद्वंद्वी का मुकाबला नहीं कर पाता। अतः हार्डी ने इस उपन्यास में गायव होते उस वक्त का वर्णन किया है जिसमें अपनापन था।

5.चाल्स डिकेन्स द्वारा 19वीं शताब्दी में ब्रिटेन के सामाजिक परिवर्तनों का उल्लेख

Ans : चार्ल्स डिकेन्स ने अपने उपन्यासों में लोगों के जीवन य चरित्र पर औद्योगीकरण के दुष्प्रभावों के बारे में लिखा । उनका उपन्यास ‘हार्ड टाइम्स’ 1854 में प्रकाशित हुआ जिसमें एक काल्पनिक औद्योगिक शहर कोंकराऊन का चित्रण किया गया है। यहाँ मजदूरों को ‘हाथ’ की संज्ञा से जाना जाता है और मशीन चलाने के अलावा उसकी कोई अस्मिता नहीं है।

डिकेन्स ने न केवल लाभ के लोभ अपितु उन विचारों की भी जमकर आलोचना की जो इन्सानों को महज उत्पादन का औजार मानते हैं।

इसी तरह डिकेन्स के एक अन्य उपन्यास ओलिवर ट्विस्ट में भी औद्योगीकरण के दीर में शहरी जीवन की दूर्दशा का वर्णन किया गया है। इस उपन्यास के पात्र को जो अनाथ है छोटे-मोटे अपराधियों और भिखारियों की दुनिया में रहना पड़ता है। एक क्रूर बर्कहाऊस में पलने बढ़ने के बाद मुख्य पात्र ओ लिवर को एक अमीर व्यक्ति गोद ले लेता है और वह सुख से रहने लगता है। इस प्रकार इस नाटक का सुखांत किया गया है। परन्तु ऐसा हर निर्धन व्यक्ति से जुड़े उपन्यास में नहीं होता।

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6.. उन्नीसवीं सदी के यूरोप और भारत, दोनों जगह उपन्यास पढ़ने वाली औरतों के बारे में जो चिंता पैदा हुई उसे संक्षेप में लिखें। इन चिंताओं से इस बारे में क्या पता चलता है कि उस समय औरतों को किस तरह देखा जाता था?

उत्तरः 19वीं सदी की उपन्यास पढ़ने वाली यूरोपीय महिलाओं के बारे में चिंता- 19वीं सदी के अधिकतर उपन्यासों में यूरोपीय महिलाओं की घरेलू भूमिका को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। परन्तु इसके विपरीत शारलॉट ब्रॉण्ट (1816-1855) जैसी उपन्यासकारों ने औरतों की ऐसी छवि भी पेश की जो सामाजिक मान्यताओं को मानने से पहले उनसे लड़ती हैं। शारलॉट ब्रॉण्ट द्वारा 1874 रचित ‘जेन आयर’ में एक ऐसी आजाद ख्याल और दृढ़ व्यक्तित्व वाली युवती जेन को दिखाया गया है जो दस साल की उम्र में ही बड़ों के पाखंड का मुँह तोड़ जवाब देकर सबको चौका देती है।

19वीं सदी की उपन्यास पढ़ने वाली भारतीय औरतों के बारे में चिंता- औपनिवेशिक भारत में अनेक पारिवारिक बंधनों के बावजूद घरों, स्कूलों तथा पुस्तकालयों में भारतीय बालिकाएँ तथा महिलाएँ उपन्यास का पाठन करने लगी थी। परन्तु कुछ संकीर्ण मानसिक वाले अभिभावक अपनी बच्चियों को उपन्यासों के पढ़ने से रोकते थे। वे लोग उपन्यासों के औरतों पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों से चिंतित थे क्योंकि उनकी नजर में औरतें जल्दी दिग्भ्रमित होने वाले चरित्र की होती हैं।

निष्कर्ष

उपरोक्त तथ्यों के आधार पर हम कह सकते हैं कि भारत तथा यूरोप में उपन्यास पढ़ने वाली औरतों को जल्दी दिग्भ्रमित होने वाली, तुच्छ तथा अपने पुरुष साथी की सहायक समझा जाता था। 

7.औपनिवेशिक भारत में उपन्यास किस तरह उपनिवेशकारों और राष्ट्रवादियों, दोनों के लिए लाभदायक था? 

उत्तरः इस बात में कोई संदेह नहीं कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। 

उपन्यासों को पढ़कर लोगों के पहनावे-ओढावे, पूजा-पाठ, उनके विश्वास और आचार-विचारों के बारे में सहज पता चल जाता है। 

इस बारे में बताएँ कि हमारे देश में उपन्यासों में जाति के मुद्दे को वह समाज से प्रभावित होता है तो समाज भी उससे प्रभावित होता है। उपन्यासों ने भारत में उपनिवेशवादियों तथा भारत की जनता दोनों को लाभान्वित तथा प्रभावित किया जिसका वर्णन इस प्रकार- 

(i) औपनिवेशिक सरकार को उपन्यासों के जरिए भारत के देसी जीवन रीति-रिवाजों से जुड़ी जानकारी का एक अमूल्य स्त्रोत प्राप्त हुआ क्योंकि किसी भी देश पर शासन करने के लिए वहाँ के समाज के बारे में जानकारी होना अति आवश्यक है।

(iii) हिन्दुस्तानियों ने उपन्यासों का प्रयोग समाज में व्याप्त बुराइयों की आलोचना करने के लिए किया ।।

(iv) इनके माध्यम से प्राचीनकाल का महिमागायन करके पाठकों में राष्ट्रीय गौरव की भावना का संचार किया गया। 

(v) उपन्यासों के फलस्वरूप भारत में भाषा के साझा आधार पर एक अलग किस्म की सामूहिकता की भावना का विकास हुआ।

(vi) उपन्यास का कौन-सा पात्र किस प्रकार बोलता है यह उसके इलाके, वर्ग या जात का परिचायक बन गया। इस प्रकार उपन्यास के माध्यम से लोग यह जान गए कि उनके इलाके के लोग उनकी भाषा किस तरह अलग ढंग से बोलते हैं। किस तरह उठाया गया।

8.किन्हीं दो उपन्यासों का उदाहरण दें और बताएँ कि उन्होंने पाठकों को मौजूदा सामाजिक मुद्दों के बारे में सोचने को प्रेरित करने के लिए क्या प्रयास किए।

उत्तरः 19वीं शताब्दी में कई साहित्यकारों ने भारत में विद्यमान जति प्रथा, निम्न जातियों और अल्प संख्यक लोगों के साथ-साथ कु सामाजिक मसलों को अपने उपन्यासों में उठाया। इनके दो उदाहर इस प्रकार हैं 

(i) ओ. चंदू मेनन ने अपने उपन्यास ‘इदूलेखा’ के माध्यम से जाति प्रथा के मुद्दे को उठाया। यह ‘उच्च जाति’ की एक वैवाहिक समस्या से संबंधित था जिसमें नमबूदरी ब्राह्मण जो इस समय केरल के बड़े जमींदार थे तथा नायर जाति समूहों की कहानी पर आधारित था। इसमें नायरों की नई पीढ़ी नायर महिलाओं के साथ नंबूदरी ब्राह्मणों के साथ रिश्ते पर आपति उठाती हैं।

(ii) इसी संदर्भ में एक अन्य उपन्यास ‘सरस्वती विजयम’ उल्लेखनीय है जो 1892 में केरल में लिखा गया। इस जुल्म उपन्यास के माध्यम से भी जाति दमन की कड़ी आलोचना की गई है। इसमें नायक ‘अछूत’ ब्राह्मण जमींदार के से बचने के लिए शहर भाग जाता है। यह ईसाई धर्म अपना लेता है और एक जज बनकर वापिस स्थानीय कचहरी में आता है। ये दोनों उपन्यास पाठक को उस समय की सामाजिक स्थिति पर सोचने के लिए मजबूर कर देते हैं। 

9. बताइए कि भारतीय उपन्यासों में एक अखिल भारतीय जुड़ाव का अहसास पैदा करने के लिए किस तरह की कोशिशें की गई। 

उत्तरः (i) मराठों और राजपूतों पर लिखे गये उपन्यासों ने हिंदुस्तान सर्वभारत की भावना का विस्तार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

(ii) अंग्रेजी भाषा में उपन्यास लिखे जाने से देश के विभिन्न भागों में रहने वाले भारतवासियों ने अंग्रेजी भाषा व रोमन लिपि को समझा और अन्य क्षेत्रों के लोगों के साथ विचारों का आदान-प्रदान किया। इस प्रकार सामाजिक, भाषाई और सांस्कृतिक एकता की भावना का विकास हुआ जिसने सर्व भारतीयता की भावना को बल प्रदान किया।

(iii) भारत में विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं लेकिन सभी क्षेत्रों में लगभग परंपराएँ, रीति-रिवाज, धार्मिक देवी-देवता, जीवन शैली आदि में समरूपता पाई जाती है। यहाँ के उपन्यासकारों ने एक जैसी ग्रामीण जीवन, सामाजिक समस्याओं, राजनैतिक समस्याएँ आदि को अपने उपन्यासों में उठाया। इनका भारत की विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हुआ जिससे विभिन्न भाषी लोग एक-दूसरे के विचारों से परिचित हुए। यह सभी कारण भारतीय लोगों में सर्व भारतीयता के विचार को लाने में सहायक सिद्ध हुए।


कक्षा 10 इतिहास समाधान | class 10 history solution

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FAQs

समाज में उपन्यास की क्या भूमिका है?

यह एक दूसरे से जुड़ने की क्षमता को बढ़ाता है। यह हमें थोड़ा और जागरूक और सूचित करता है। कई फिक्शन कार्यों में हाइलाइट किया गया सामाजिक यथार्थवाद उन विषयों को प्रस्तुत करता है जो पाठकों को विविधता का सामना करने की अनुमति देते हैं लेकिन प्रतिनिधित्व के माध्यम से खुद को भी देखते हैं।

उपन्यासों का मुख्य विचार क्या है?

मुख्य विचार यह है कि किताब किस बारे में है। विषय किसी पुस्तक का संदेश, पाठ या नैतिक है। पढ़ने से पहले, पढ़ने के दौरान, और किताब पढ़ने के बाद महत्वपूर्ण प्रश्न पूछकर, आप जो भी किताब पढ़ रहे हैं उसका मुख्य विचार और विषय निर्धारित कर सकते हैं!

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